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________________ 200 श्राद्धविधि प्रकरणम् आजीविका तो कर्म के अधीन है, तो भी व्यवहार शुद्ध रखने से ग्राहक अधिक आते हैं व लाभ भी विशेष होता है। इस पर दृष्टान्त है किहेलाक सेठ की कथा : एक नगर में हेलाक नामक श्रेष्ठी था। उसके चार पुत्र थे तथा उसका अन्य परिवार भी बहुत विस्तृत था। हेलाक श्रेष्ठी ने तीनसेर, पांचसेर आदि के खोटे माप तौल रखे थे। तथा त्रिपुष्कर, पंचपुष्कर आदि संज्ञा कहकर पुत्र को गाली देने के बहाने से खोटे तौलमाप द्वारा लोगों को ठगा करता था। उसके चौथे पुत्र की स्त्री बहुत समझदार थी। उसे यह बात ज्ञात होने पर एक बार श्रेष्ठी को बहुत ठपका दिया। तब श्रेष्ठी ने कहा कि, 'क्या करें? ऐसा न करें तो निर्वाह कैसे हो? कहा है -भूखा मनुष्य कौनसा पाप नहीं करता?' यह सुन पुत्रवधू ने कहा कि, 'हे तात! ऐसा न कहिए। कारण कि, व्यवहार शुद्ध रखने से ही सर्व लाभ रहता है। कहा है कि. धम्मतिथिआण दव्वत्थिआण नारण वट्टमाणाणं। धम्मा दव्वं सव्वं संपज्जइ नन्नहा कहवि ।।१।। लक्ष्मी के अर्थी सुपुरुष धर्म तथा नीति के अनुसार चलें तो उसके समस्त कार्य धर्म से ही सिद्ध होते हैं। धर्म के बिना किसी प्रकार भी कार्यसिद्धि नहीं होती। इसलिए हे तात! परीक्षार्थ छः मास तक शुद्ध व्यवहार कीजिए। उससे धन की वृद्धि होगी। और इतने समय में प्रतीति आजाय तो आगे भी वैसा ही कीजिए।' - पुत्रवधू के वचनानुसार श्रेष्ठी ने वैसा ही करना प्रारम्भ किया। अनुक्रम से ग्राहक बहुत आने लगे, आजीविका सुख से हुई और चार तोला सोना भी पास में हो गया। पश्चात् 'न्यायोपार्जित द्रव्य खो जाने पर भी पुनः मिल जाता है।' इस बात की परीक्षा करने के हेतु पुत्रवधू के वचन से श्रेष्ठी ने उक्त चार तोला सुवर्ण पर लोहा मढ़ाकर उसका अपने नाम का एक प्रकारका तौल बनवाया,व छः मास तक उसे काम में लेकर एक द्रह में डाल दिया। भक्ष्य वस्तु समझकर एक मच्छी उसे निगल गयी। धीवर ने वह मछली पकड़ी तो उसके पेट में से उक्त तौल निकला। नाम पर से पहिचानकर धीवर ने वह तौल श्रेष्ठी को दिया। जिससे श्रेष्ठी को तथा उसके समस्त परिवार को शुद्ध व्यवहार पर विश्वास उत्पन्न हो गया। इस तरह श्रेष्ठी को बोध हुआ तब वह सम्यक् प्रकार से शुद्ध व्यवहार करके बड़ा धनवान हो गया। राजद्वार में उसका मान होने लगा। वह श्रावकों में मुख्य व सब लोगों में इतना प्रख्यात हुआ कि, उसका नाम लेने से भी विघ्न, उपद्रव दूर होने लगे। वर्तमान समय में भी मल्लाह लोग नौका चलाते समय, 'हेला, हेला' ऐसा कहते सुनते हैं...इत्यादि। विवेकीपुरुष को सर्व पापकर्म त्यागना चाहिए। उसमें भी अपने स्वामी, मित्र, अपने ऊपर विश्वास रखनेवाला, देव, गुरु, वृद्ध तथा बालक इनके साथ वैर करना अथवा उनकी धरोहर दबाना ये उनकी हत्या करने के समान है, अतएव ये और अन्य महापातकों का अवश्य त्याग करना चाहिए। कहा है कि
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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