________________
196
श्राद्धविधि प्रकरणम् नीचपात्रप्रियत्वं च, पञ्च श्रीसहचारिणः ।।१।। निर्दयता, अहंकार, अतिलोभ, कठोर भाषण और नीच वस्तु पर प्रीति रखना ये पांच लक्ष्मी के साथ निरंतर रहते हैं, ऐसा एक वचन प्रसिद्ध है, परन्तु वह सज्जनपुरुषों को लागू नहीं होता। हलके स्वभाव के मनुष्यों को लक्ष्य करके ऊपर का वचन प्रवृत्त हुआ है। इसलिए ज्ञानीपुरुषों को अधिकाधिक द्रव्य आदि मिलने पर भी अहंकार आदि न करना चाहिए। कहा है कि
विपदि न दीनं सम्पदि न गर्वितं सव्यथं परव्यसने। हृष्यति चात्मव्यसने येषां चेतो नमस्तेभ्यः ॥१॥ जंजं खमइ समत्थो, धणवंतो जं न गम्विओ होइ।
जंच सविज्जो नमिओ, तिहिं तेहि अलंकिआ पुहवी ।।२।। जिस सत्पुरुषों का चित्त आपत्ति आने पर दीन नहीं होता, संपदा (लक्ष्मी) आने पर अहंकार को प्राप्त नहीं होता, दूसरों का दुःख देखकर दुःखी हो, और स्वयं संकट में होने पर भी हर्षित हो, उनको नमस्कार है। सामर्थ्य होते हुए दूसरों के उपद्रव सहन करे, धनवान् होकर गर्व न करे तथा विद्वान् होकर भी विनय करे, ये तीनों पुरुष पृथ्वी के श्रेष्ठ अलंकार हैं।
विवेकीपुरुष को किसीके साथ स्वल्पमात्र भी क्लेश न करना, जिसमें भी बड़े मनुष्यों के साथ तो कभी भी न करना। कहा है कि जिसे खांसी का विकार हो उसको चोरी नहीं करनी, जिसे अधिक नींद आती हो उसको व्यभिचार न करना, जिसे कोई रोग हो उसको मधुरादि रस पर आसक्ति न करनी, अर्थात् अपनी जीभ वश में रखनी,
और जिसके पास धन हो उसको किसी के साथ क्लेश न करना चाहिए। भंडारी, राजा, गुरु और तपस्वी तथा पक्षपाती, बलिष्ट, क्रूर और नीच मनुष्यों के साथ वाद न करना चाहिए। यदि किसी बड़े मनुष्य से द्रव्य आदि का व्यवहार हुआ हो तो विनय से ही अपना कार्य साधना; बलात्कार क्लेश आदि न करना। पंचोपाख्यान में भी कहा है कि उत्तमपुरुष को विनय से, शूरपुरुष को फितूर से, नीचपुरुष को अल्पद्रव्यादिक के दान से और अपनी बराबरी का हो उसे अपना पराक्रम दिखाकर वश में करना चाहिए। ___धन का अर्थी व धनवान इन दोनों पुरुषों को विशेषकर क्षमा रखनी चाहिए। कारण कि-क्षमा से लक्ष्मी की वृद्धि तथा रक्षा होती है। कहा है कि ब्राह्मण का बल होम-मन्त्र, राजा का बल नीतिशास्त्र, अनाथ प्रजाओं का बल राजा और वणिक् पुत्र का बल क्षमा है।
अर्थस्य मूलं प्रियवाक् क्षमा च, कामस्य वित्तं च वपुर्वयश्च।
धर्मस्य दानं च दया दमश्च, मोक्षस्य सर्वार्थनिवृत्तिरेव ।। प्रिय वचन और क्षमा ये दोनों धन के कारण हैं। धन, शरीर और यौवनावस्था ये तीनों काम के कारण हैं। दान, दया और इन्द्रियनिग्रह ये तीन धर्म के कारण हैं। और