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________________ 186 श्राद्धविधि प्रकरणम् न्यायस्थान के अधिकारी अंगरक्षक, तलाट', कोतवाल, सीमापाल, पटेल आदि अधिकारी किसी भी मनुष्य को सुख नहीं देते। शेष अधिकार कदाचित् कोई श्रावक स्वीकारे, तो उसने मन्त्री वस्तुपाल तथा पृथ्वीधर की तरह श्रावकों को शासन की कीर्ति हो, उस रीति से अधिकार चलाना चाहिए। कहा है कि जिन मनुष्यों ने पापमय राज्यकार्य करते हुए, उनके साथ धर्मकृत्य करके पुण्योपार्जन नहीं किया, उन मनुष्यों को द्रव्य के लिए धूल धोनेवाले लोगों से भी मूर्ख जानना चाहिए। अपने ऊपर राजा की बहुत कृपा हो तो भी उसका शाश्वतपना धार उसके किसी भी मनुष्य को अप्रसन्न नहीं करना। तथा राजा अपने को कोई कार्य सौंपे तो राजा से उस काम के ऊपर ऊपरी मनुष्य मांगना । सुश्रावक ने इस प्रकार से राज्य सेवा करनी चाहिए। जहां तक बने वहां तक सुश्रावक को उपरोक्त प्रकार से ऐसे राजा की ही सेवा करनी उचित है। कहा है कि—कोई श्रावक के घर यदि ज्ञान व दर्शन संपादन करके दास होकर रहे वह भी श्रेष्ठ है, परन्तु मिथ्यात्व से मूढमति सामान्य राजा अथवा चक्रवर्ती होना योग्य नहीं । कदाचित् अन्य कोई निर्वाह का साधन न हो, तो समकित के पच्चक्खाण में 'वित्तीकंतारेणं' याने आजीविका रूप गहरापन उल्लंघन करने के लिए मिथ्यात्वी के विनय आदि की छुट रखता हूं, ऐसा आगार रखा है, जिससे कोई श्रावक जो मिथ्यादृष्टि राजा आदि की सेवा करे, तो भी उसने अपनी शक्ति तथा युक्ति से बन सके उतनी स्वधर्मी की पीड़ा टालना । तथा अन्य किसी प्रकार से थोड़ा भी श्रावक के घर निर्वाह होने का योग मिले,. तो मिथ्यादृष्टि की सेवा त्याग देना चाहिए। ।। इति सेवाविधि ॥ भिक्षा : सुवर्ण आदि धातु, धान्य, वस्त्र इत्यादि वस्तुओं के भेद से भिक्षा अनेक प्रकार की है। उनमें सर्व संग परित्याग करनेवाले मुनिराज की धर्मकार्य के रक्षणार्थ आहार, वस्त्र, पात्र आदि वस्तु की भिक्षा उचित है। कहा है कि हे भगवति भिक्षे ! तू नित्य परिश्रम के बिना मिल जाय ऐसी है, भिक्षु लोगों की माता समान है, मुनिराज की तो कल्पलता है, राजा भी तुझे नमते हैं, तथा तू नरक को टालने वाली है, इसलिए मैं तुझे नमस्कार करता हूं। शेष सर्व प्रकार की भिक्षा मनुष्य को लघुता उत्पन्न करनेवाली है। कहा है कि ता रूवं ताव गुणा, लज्जा सच्चं कुलक्कमो ताव। तावच्चिअ अभिमाणं, देहित्ति न जंपए जाव ॥१॥ मनुष्य जब तक मुंह से 'दो' यह शब्द नहीं निकालता, अर्थात् याचना नहीं करता, तब तक उसके रूप, गुण, लज्जा, सत्यता, कुलीनता व अहंकार रहे हैं ऐसा जानना । तृण अन्य वस्तुओं की अपेक्षा हलका है, रुई तृण से हलकी है, और याचक तो १. पोलिस का मुख्य अधिकारी ।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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