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________________ 172 श्राद्धविधि प्रकरणम् अपना शौचमूल धर्म अंगीकार कराया था। थावच्चापुत्र आचार्य ने उसीको पुनः प्रतिबोधकर विनयमूल जिनधर्म अंगीकार कराया। पश्चात् सुदर्शन श्रेष्ठी के देखते हुए शुक परिव्राजक व थावच्चापुत्र आचार्य में परस्पर इस प्रकार प्रश्नोत्तर हुएशुकपरिव्राजक :- 'हे भगवान्! 'सरिसवय भक्ष्य है कि अभक्ष्य है? थावच्चापुत्र :- 'हे शुकपरिव्राजक! सरिसवय भक्ष्य है, तथा अभक्ष्य भी है, वह इस प्रकार है-सरिसवय दो प्रकार के हैं। एक मित्र सरिसवय (समान उमर का) और दुसरा धान्य सरिसवय (सर्षप, सरसों)। मित्र सरिसवय तीन प्रकार के हैं। एक साथ में उत्पन्न हुआ, दूसरा साथ में बढ़ा हुआ, और तीसरा बाल्यावस्था में साथ में धूल में खेला हुआ। ये तीनों प्रकार के मित्र सरिसवय साधुओं को अभक्ष्य हैं। धान्य सरिसवय दो प्रकार के हैं। एक शस्त्र से परिणत और दूसरे शस्त्र से अपरिणत शस्त्र परिणत सरिसवय दो प्रकार के हैं। एक प्रासुक व दूसरे अप्रासुका प्रासुक सरिसवय भी दो प्रकार के हैं। एक जात और दूसरे अजात। जात सरिसवय भी दो प्रकार के हैं। एक एषणीय और दूसरे अनेषणीय। एषणीय सरिसवय भी दो प्रकार के हैं। लब्ध और अलब्धाधान्य सरिसवय में अशस्त्र परिणत, अप्रासुक, अजात, अनेषणीय व अलब्ध इतने प्रकार के अभक्ष्य है, तथा शेष सर्व प्रकार के धान्य सरिसवय साधुओं को भक्ष्य है। इसी प्रकार कुलत्थ' और मास' भी जानो। इसमें इतनी ही विशेषता है कि, मास तीन प्रकार का है। एक कालमास (महीना), दूसरा अर्थमास (सोने चांदी का तौल विशेष) और तीसरा धान्यमास (उड़द)। इस प्रकार थावच्चापुत्र आचार्य ने बोध किया, तब अपने हजार शिष्यों के परिवार सहित शुक परिव्राजक ने दीक्षा ली। थावच्वाचार्य अपने एक हजार शिष्यों सहित शजय तीर्थ में सिद्धि को प्राप्त हुए। पश्चात् शुकाचार्य शेलकपुर के शेलक नाम राजा को तथा उसके पांचसो मंत्रियों को प्रतिबोधकर दीक्षा दे स्वयं सिद्धि को प्राप्त हुए। शेलकमुनि ग्यारह अंग के ज्ञाता हो अपने पांचसो शिष्यों के साथ विहार करने लगे। इतने में नित्य रूक्ष आहार करने से शेलक मुनिराज को खुजली (पामा) पित्त आदि रोग उत्पन्न हुए। पश्चात् विहार करते हुए वे परिवार सहित शेलकपुर में आये। वहां उनका गृहस्थाश्रम का पुत्र मड्डुक राजा था। उसने अपनी वाहनशाला में पिता मुनि को रखे। प्रासुक औषध व पथ्य का ठीक योग मिलने से शेलक मुनिराज निरोगी हो गये, तो भी स्निग्ध आहार की लोलुपता से विहार न कर वे वहीं रहे। तदनंतर पंथक नामक एक १. 'सरिसवय' यह मागधी शब्द है। 'सदृशवय' व 'सर्षप' इन दो संस्कृत शब्दों का मागधी में 'सरिसवय' ऐसा रूप होता है। सदृशवय याने समान उमरका और सर्षप याने सरसों। २. 'कुलत्थ' शब्द मागधी है। 'कुलत्थ'. (कुलथी) व 'कुलस्थ' इन दो संस्कृत शब्दों का 'कुलत्थ' ऐसा एक ही मागधी में रूप होता है। ३. 'मास' (महिना), माष' (उड़द) और 'माष' (तौलने का एक बाट) इन तीनों शब्दों का मागधी में 'मास' ऐसा एक ही रूप होता है। -
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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