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श्राद्धविधि प्रकरणम् है कि
ऋणं ह्येकक्षणं नैव, धार्यमाणेन कुत्र (शंक्व) चित्।
देवादिविषयं तत्तु, कः कुर्यादतिदुस्सहम् ।।१।। श्रेष्ठपुरुष ने किसीका ऋण एक क्षणमात्र भी कदापि न रखना चाहिए, तो भला अतिदुःसह देवादिक का ऋण कौन सिर पर रक्खे? अतएव बुद्धिमान पुरुष को धर्मका स्वरूप समझकर सब जगह स्पष्ट व्यवहार रखना चाहिए। कहा है कि जैसे गाय नवीन चन्द्र को, न्यौला न्यौली को, हंस पानी में रहे हए दूध को और पक्षी चित्रावेल को जानता है, वैसे ही बुद्धिमान् पुरुष सूक्ष्मधर्म को जानता है...इत्यादि। इस विषय का अधिक विस्तार न कर अब गाथा के उत्तरार्द्ध की व्याख्या करते हैं। प्रत्याख्यान एवं गुरुवंदन : ___इस प्रकार जिनपूजा करके ज्ञानादि पांच आचार को दृढ़तापूर्वक पालनेवाले गुरु के पास जा स्वयं पूर्व किया हुआ पच्चखाण अथवा उसमें कुछ वृद्धि करके बोलना (ज्ञानादि पांच आचार की व्याख्या हमारे रचे हुए आचारप्रदीप ग्रंथ में देखो')।
पच्चक्खाण तीन की साक्षी से लिया जाना चाहिए। एक आत्मसाक्षिक, दूसरा देवसाक्षिक और तीसरा गुरुसाक्षिक। उसकी विधि इस प्रकार है
जिनमंदिर में देववन्दन के निमित्त, आये हुए या स्नात्र महोत्सव के दर्शन के निमित्त अथवा उपदेश आदि कारण से वहां ठहरें हुए सद्गुरु के पास वन्दना आदि करके विधिपूर्वक पच्चक्खाण लेना। मंदिर में न हों तो उपाश्रय में जिनमंदिर की तरह तीन निसीहि तथा पांच अभिगम आदि यथायोग्य विधि से प्रवेशकर उपदेश के पूर्व अथवा अनन्तर सद्गुरु को पच्चीस आवश्यक से शुद्ध द्वादशावर्त वन्दना करे। इस वन्दना का फल बहुत बड़ा है। कहा है कि
नीआगोअंखवे कम्म, उच्चागोअं निबंधए। सिढिलं कम्मगंठिं तु, वंदणेणं नरो करे ॥१॥ तित्थयरत्तं सम्मत्तखाइअं सत्तमीइ तइआए।
आठ वंदणएणं, बद्धं च दसारसीहेणं ॥२॥ मनुष्य श्रद्धा से वन्दना करे तो नीचगोत्र कर्म का क्षय करता है, उच्च गोत्र कर्म संचित करता है व कर्म की दृढ़ग्रंथि को शिथिल करता है। कृष्ण ने गुरुवन्दना से सातवीं के बदले तीसरी नरक का आयुष्य व तीर्थकर नामकर्म बांधा। तथा उसने क्षायिकसम्यक्त्व प्राप्त किया। शीतलाचार्य ने वन्दना करने के लिए आये हुए रात्रि को बाहर रहे हुए और रात्रि में केवलज्ञान पाये हुए अपने चार भाणजों को प्रथम क्रोध से द्रव्यवन्दना की, पश्चात् उनके वचन से भाववंदना करने पर उनको केवलज्ञान उत्पन्न १. आचार प्रदीप ग्रन्थ में आठ प्रकार के ज्ञानाचार की आठ कथाएँ हिन्दी लीपी गुजराती भाषा में
"ज्ञानाचार" नाम से छपवायी हुई हैं। प्राप्तिस्थान से प्राप्त हो सकेगी।