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श्राद्धविधि प्रकरणम्
गया, वैसे ही दूसरे के घर दासता तथा बहुत दुःख भोगना पड़ा। कर्मसार को तो पूर्वभव में ज्ञानद्रव्य वापरने से बुद्धि की अतिमंदता आदि निकृष्ट फल मिला।
मुनिराज का ऐसा वचन सुनकर दोनों ने श्रावक धर्म अंगीकार किया, और ज्ञानद्रव्य तथा साधारणद्रव्य लेने के प्रायश्चित्तरूप कर्मसार ने बारह हजार द्रम्म ज्ञानखाते तथा पुण्यसार ने बारह हजार द्रम्म साधारणखाते ज्यों-ज्यों उत्पन्न होते जायँ त्यों-त्यों जमा करना ऐसा नियम लिया। पश्चात् पूर्वभव के पाप का क्षय होने से उन दोनों को बहुत द्रव्य लाभ हुआ। उन्होंने स्वीकृत किये अनुसार ज्ञानद्रव्य तथा साधारण द्रव्य दे दिया । उसके उपरान्त उन दोनों भाइयों के पास बारह करोड स्वर्णमुद्रा के बराबर धन हो गया। जिससे वे बड़े श्रेष्ठी व सुश्रावक हुए । उन्होंने ज्ञानद्रव्य और साधारणद्रव्य की अनेक प्रकार से रक्षा तथा वृद्धि आदि की । इस प्रकार उत्तम रीति से श्रावक-धर्म की आराधनाकर तथा अन्त में दीक्षा ले वे दोनों सिद्ध हो गये।
ज्ञानद्रव्य, देवद्रव्य की तरह श्रावक को बिलकुल ही अग्राह्य है। साधारण द्रव्य भी संघ ने दिया हो तभी वापरना योग्य है, अन्यथा नहीं। संघ ने भी साधारण द्रव्य सातक्षेत्रों में ही काम में लेना चाहिए, याचकादिक को न देना, आजकल के व्यवहार से तो जो द्रव्य गुरु के 'न्युंछनादिक से साधारणखाते एकत्र किया हुआ हो, वह श्रावकश्राविकाओं को देने की कोई भी युक्ति दृष्टि में नहीं आती अर्थात् वह द्रव्य श्रावकश्राविका को नहीं दिया जाता। धर्मशालादिक के कार्य में तो वह श्रावक से काम में लिया जा सकता है। इसी प्रकार ज्ञानद्रव्य में से साधुको दिये हुए कागजपत्रादिक भी श्रावक ने अपने उपयोग में न लेना, वैसे ही अधिक नकरा (न्यौछावर) दिये बिना उसमें अपने पुस्तक भंडार में पुस्तक स्थापन करने के लिए न लिखवाना, साधु संबंधी मुहपत्ति आदि को काम में लेना भी योग्य नहीं । कारण कि वह भी गुरुद्रव्य है। स्थापनाचार्य और नवकारवाली आदि तो प्रायः श्रावकों को देने के लिए ही गुरुने वोहोरी हो, और वह गुरु ने दी हो तो उनको वापरने का व्यवहार देखा जाता है। गुरु की आज्ञा बिना साधु, साध्वी को, लेखक से लिखवाना अथवा वस्त्रसूत्रादिक का बोहरना भी अयोग्य है इत्यादि । इस प्रकार देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य आदि थोड़ा भी जो अपनी आजीविका के निमित्त उपभोग में लें, तो उसका परिणाम द्रव्य के प्रमाण की
अपेक्षा बहुत ही बड़ा व भयंकर होता है। यह जानकर विवेकी पुरुषों ने किंचित्मात्र भी देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य व साधारण द्रव्य का उपभोग किसी प्रकार भी न करना चाहिए। और इसी हेतु से माल पहनना, पहरामणी, न्युंछन इत्यादिक का स्वीकृत किया हुआ द्रव्य उसी समय दे देना चाहिए। कदाचित् ऐसा न हो सके तो जितना शीघ्र दिया जाय • उतना ही गुणकारी है। विलम्ब करने से कभी-कभी दुर्दैव से सर्व द्रव्य की हानि अथवा
१. गुरु के संमुख खड़े रह उनके ऊपर से उतार भेंट की तरह रखा हुआ ।