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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् ॥ नमः श्रीसर्वज्ञाय ॥ ॥ प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वराय नमः ॥ श्रीमत्तपोगणाधीशरत्नशेखराचार्य कृत श्राद्धविधि प्रकरणम् (कौमुदी टीका का भाषांतर) मंगलाचरण ___(शार्दूलविक्रीडितछंद) अहत्सिद्धगणीन्द्रवाचकमुनिप्रष्ठाः प्रतिष्ठास्पदं, पञ्चश्रीपरमेष्ठिनः प्रददतां प्रोच्चैगरिष्ठात्मताम् । द्वैधानपञ्च सुपर्वणां शिखरिणः प्रोद्दाममाहात्म्यतश्वेतश्चिन्तितदानतश्च कृतिनां ये स्मारयन्त्यन्वहम् ।।१।। जो पंडितों को अपनी लोकोत्तर प्रतिष्ठा से देवताओं के पांच मेरु का और मनोवांछित वस्तु के दान से पांच कल्पवृक्षों का निरन्तर स्मरण कराते हैं ऐसे यश के भण्डार श्री अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा मुनिवर्य ये पंच परमेष्ठी आराधक भव्यप्राणियों को पूर्ण प्रतिष्ठा का स्थान (मोक्ष) दो ॥१॥ (आर्यावृत्तम्) श्रीवीरं सगणधरं, प्रणिपत्य श्रुतं गिरं च सुगुरूंश्च। विवृणोमि स्वोपज्ञं श्राद्धविधिप्रकरणं किञ्चित् ।।२।। गौतमादि गणधर युक्त भगवान श्री महावीरस्वामी, जिनभाषितवाणी तथा छत्तीस.गुणयुक्त सद्गुरु इन सब को भावपूर्वक वन्दनाकर 'श्राद्धविधि' प्रकरण की अल्पमात्र व्याख्या करता हूँ। टीका का प्रयोजन (आर्यावृत्तम्) युगवरतपागणाधिपपूज्यश्रीसोमसुन्दरगुरूणाम्। वचनादधिगततत्त्वः सत्त्वहितार्थं प्रवर्तेऽहम् ।।३।। युगप्रधान, तपागच्छाचार्य तथा पूज्य श्रीसोमसुन्दर गुरु महाराज के वचन से केवली भाषित तत्त्व को ज्ञातकर, मैं उनके वचनों से ही भव्यजीवों के हित के लिए व्याख्या का आरम्भ करता हूँ।।३।।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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