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श्राद्धविधि प्रकरणम्
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भांडपड़ह जानो। ८ भंभा याने ढ़क्का, ९ होरंभा याने महाढ़क्का, १० भेरी यह ढक्के के आकार का वाद्यविशेष है । ११ झल्लरी यह चमड़े से मढ़ी हुई पहोली और वलयाकार होती है । १२ दुंदुभी, यह संकडे मुंह का तथा भेरी के आकार का देववाद्य होता है । १३ मुरज अर्थात् बड़ा मादल, १४ मृदंग याने छोटा मादल, १५ नांदीमृदंग, यह एक ओर से संकडा व दूसरी ओर से चौड़ा होता है । १६ आलिंग, यह मुरज की एक जाति है । १७ कुस्तुम्ब, यह चमड़े से बंधा हुआ घड़े के समान एक बाजा होता है। १९ मादल, यह दोनों ओर से समान होता है, २० विपंची, यह तीन तांत की वीणा होती है । २१ वल्लकी अर्थात् सामान्य वीणा, २४ परिवादिनी याने सात तांत की वीणा, २८ महती याने सो तार की वीणा, ३५ तुम्बवीणा, तुम्बे वाली वीणा को कहते हैं । ३६ मुकुन्द यह एक जात का मुरज है, जो प्रायः बहुत लीन होकर बजाया जाता है । ३७ हुडुका, यह प्रसिद्ध है । ४० डिंडिंग, यह प्रस्तावना सूचक एक वाद्य है । ४२ कडंबा, ३९ करटिना और ४३ दर्दरक ये प्रसिद्ध है । ४४ दर्दरिका याने छोटा दर्दरक ४७ तल याने हस्तताल। ५४ वाली यह एक प्रकार का मुका वाजिन्त्र है, ५७ बंधूक, यह भी तूण सद्दश मुख वाजिंत्र है। बाकी के भेद लोक में प्रसिद्ध हों उसके अनुसार जान लेना चाहिए। सब वाद्यों के भेद उन पचास जाति के वाद्यों में समाते हैं। जैसे वंश में वाली, वेणु, परिली और बन्धूक इनका समावेश होता है। शंख, शृंग शंखिका, खरमुखी, पेया और परपरिका ये वाद्य बड़े भारी शब्द से, फूंकने पर बजते हैं। पड़ह और पणव ये दो डंकों से बजते हैं। भंभा और
रंभा ये दो आस्फालन करने से बजते हैं। भेरी, झल्लरी और दुंदुभी ये तीन ठोकने से बजते हैं। मुरज, मृदंग और नांदीमृदंग ये तीन आलाप करने से बजते हैं। आलिंग, कुस्तुम्ब, गौमुखी और मर्दल ये चार जोर से ठोकने पर बजते हैं। विपंची, वीणा, और बल्लकी ये तीन मूर्च्छना करने से बजते हैं । भ्रामरी, षड्भ्रामरी और परिवादिनी ये तीन किंचित् हिलाने से बजते हैं। बब्बीसा, सुघोषा और नंदीघोषा ये तीन फिराने से बजते हैं। महती, कच्छपी और चित्रवीणा ये तीन कूटने से बजते हैं। आमोट, झंझा और नकूल ये तीन मरोड़ने से बजते हैं। तूण और तुम्बवीणा ये दो स्पर्श करने से बजते हैं। मुकुद, हुडुक और चिच्चिकी ये तीन मूर्च्छना करने से बजते हैं। करटी, डिंडिम, किणित और कर्दबा ये चार बजाने से बजते हैं। दर्दरक, दर्दरिका, कुस्तुंब और कलशिका ये चार बहुत पीटने से बजते हैं। तल, ताल और कांस्यताल ये तीनों परस्पर लगने से बजते हैं। रिंगिसिका, लत्तिका, मकरिका और शिशुमारिका ये चार घिसने से बजते हैं। वंश, वेणु, बाली, पिटली और बंधूक ये पांच फूंकने से बजते हैं।
नाटक के नाम :
सर्व दिव्य कन्या और कुमार साथ-साथ गायन और नृत्य करते हैं, इस प्रसंग में बत्तीसबद्धनाटक के नाम इस प्रकार हैं – स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुग्म, दर्पण, इन आठ मंगलिकों की विचित्र रचना यह मंगलभक्ति चित्र नामक प्रथम भेद [१] आवर्त, (दक्षिणावर्त) प्रत्यावर्त (वामावर्त)