SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास D . . चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति (ऋ० १११६२।६) में 'ये' पद से कर्ता के बहुत्व का बोध हो जाने से क्रिया द्वारा बहुत्व प्रदर्शन की आवश्यकता न रहने के कारण एक वचन का प्रयोग हुआ है। अधा स वोरर्दशभिवियूयाः (ऋ० ७।१०४।१५) में अन्य पुरुषत्व का बोध सः पद से हो जाने पर किया में अन्य पुरुषत्व के बोधक प्रथम पुरुष के प्रत्यय की आवश्यकता नहीं रहती, अतः शेष अर्थ के बोधनार्थ मध्यम पुरुष के प्रत्यय का प्रयोग हो गया। - अब हम इसी प्रकार के कुछ लौकिक शिष्ट प्रयोग प्रस्तुत करते हैंविराटद्वपदौ........ ययुः। महा० द्रोण. १८६॥३१॥ शालावृका......."विन्दति । महा० शान्ति० १३३।८।। वयं..... प्रतिपेदिरे । महा० शान्ति० ३३६॥३१॥ यूयं'......"अपराध्येयुः । महा० वन० २३६।१०॥ वयं-....."ददृशिरे । महा० शान्ति० ३३६॥३५।। इस संक्षिप्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि यदि पाणिनीय शास्त्र की भाषाविज्ञान की दृष्टि से व्याख्या की जाये और पाणिनीय नियमों और प्रयोगों के आधार पर ज्ञापित होने वाले नियमों का सामान्य नियमों के रूप में प्रयोग किया जाये तो लोकभाषा से लप्त सहस्रों मूल धातुओं और प्रातिपदिकों का परिज्ञान हो सकता है। २० संस्कृत भाषा का विपुल शब्द-समूह आंखों के सन्मुख नर्तन करने लगता है । सम्भवतः इसी दृष्टि से भट्टकुमारिल ने कहा था 'यावांश्च अकृतको विनष्टः शब्दराशिः तस्य व्याकरणमेवैकम् उपलक्षणम्, तदुपलक्षितरूपाणि च ।' तन्त्रवार्तिक १।३।१२, पृष्ठ २३६, पूना सं०। २५ जब अष्टाध्यायी की उक्त प्रकार की बैज्ञानिक व्याख्या से संस्कृत भाषा की लुप्त अलुप्त विपुल शब्दराशि का परिज्ञान होगा तभी संसार की बिविध भाषाओं का यथोचितरूप में तुलनात्मक अध्ययन सम्भव है । अन्यथा थोड़े से ज्ञात शब्दों के आधार पर किया गया तुलनात्मक अध्ययन और उनके द्वारा निकाले गये परिणाम सदा भ्रान्त ३० होंगे। इस विषय में योरोप के प्रमाणीभूत प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक बाँप
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy