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________________ आत्म-परिचय जन्म और अध्ययन मेरा जन्म राजस्थान राज्य के पुष्कर क्षेत्र अन्तर्गत अजमेर (=अजयमेरु) मण्डल के बिरकच्यावास (=विरच्यावास) में बसे हुए भारद्वाज गोत्र, त्रिप्रवर, प्राचार्य टंक, यजुर्वेदीय माध्यनन्दिन शाखा अध्येता सारस्वत कुल में हुआ है। मेरे दादा का नाम रघुनाथ प्राचार्य, पिता का गौरीलाल प्राचार्य एवं माता का नाम यमुनाबाई था। यद्यपि कई पीढ़ियों से निर्वाह का मुख्य साधन कृषि था, परन्तु मेरे पिताजी ने कृषि कर्म छोड़कर अध्यापन कार्य स्वीकार किया था। - हमारे गांव में एक सूरजमल पटेल थे। उन्होंने अजमेर में नवभारत के निर्माता वेदोद्धारक स्वामी दयानन्द सरस्वती के भाषण सुने थे (मुझे भी बचपन में उनसे स्वामी दयानन्द के व्यक्तित्व के संस्मरण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हना था)। इनके संसर्ग से पिताजी एवं ग्राम के दो नवयुवक रामचन्द्र जी लोया मौर शिवचन्दजी इनाणी भो आर्यसमाज की ओर आकृष्ट हुए। अध्ययनार्थ पिताजी कुछ वर्ष अजमेर में रहे । वहां प्रार्यसयाज के संसर्ग में आने से वे स्वामी दया. नन्द सरस्वती के दृढ़ अनुयायी बन गये। पिताजी का लगभग २३ वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ । उन दिनों कन्याओं को पढ़ाने की परिपाटी नहीं थी। पिताजी ने स्वामी दयानन्द के अनुयायी होने से मेरी माता को स्वयं पढ़ा लिखा कर सुशिक्षित किया और उन्हें अपने विचारों के अनुकूल बना लिया। सुसंस्कृत माता-पिता ने निश्चय किया कि हम अपनी सन्तान को अपने वंश के अनुरूप सच्चा वेदपाठी ब्राह्मण बनायेंगे। पिताजी ने अध्ययन के पश्चात् बीकानेर तथा किशनगढ़ राज्य के कई स्थानों पर अध्यापन कार्य किया, परन्तु सन १९०८ में वे इन्दौर राज्य की सेवा में चले गये। अतः मेरा जन्म इन्दौर राज्य के नीमाड़ जिले के मुहम्मदपुर ग्राम में भाद्र सुदी प्रष्टमी संवत् १९६६ तदनुसार २२ सितम्बर सन् १९०६ को हुआ। सातवें वर्ष में मुझे
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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