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सं० व्या० शा ० इ० के तृतीय भाग में परिवर्धन तथा संशोधन
पृष्ठ ८३ पं० १६ में उद्धृत 'सन्ध्यावबूं गृह्य करेण भानुः पद्यांश का सकल पाठ इस प्रकार है
सौ रविः कुमुदचचताङ्गी रक्तांशुकेनेव कृतोत्तरीयः । सन्ध्यां वधू गृह्य करेण गाढं जामातृवद् वासगृहं प्रविष्टः ।।
यह श्लोक महामहोपाध्याय पुरुषोत्तम विद्यावागीश प्रणीत 'प्रयोग रत्नमाला व्याकरण', कृद्विन्यास के सूत्र २७, पृष्ठ ३३२ पर उद्धृत है । यह 'असम संस्कृत बोर्ड गोहाटी' से सन् १९७३ में प्रकाशित हुआ है। इसके सम्पादक शिवनाथ शास्त्री हैं ।
यह विशिष्ट सूचना विजयपाल शास्त्री ( शोधछात्र, दिल्ली) ने २१-२-८५ के पत्र में दी हैं । तदर्थं शुभाशीः ।
हमने पृष्ठ ८३ पर जो पद्यांश छापा था वह 'नमि' साधु द्वारा उद्धृत है ( द्र० इसी पृष्ठ की टि० ४) । उसने केवल 'गृह्य' पद के लिये उक्त पद्यांश उद्धृत किया है । सम्भव है पद्यांश की अर्थवत्ता के लिये उसने 'गढ' पद के स्थान पर 'भानु' का प्रयोग कर दिया हो । प्रयोगरत्नमाला में द्वितीय चरण में 'रक्तांशुकेनैव' पाठ छपा है । यह मुद्रण दोष प्रतीत होता है ।
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पृष्ठ ८४, पं० २६ – 'रामनाथ' के स्थान में 'रमानाथ' होना चाहिये ।
पृष्ठ १२, पं० १५ २८ तक का लेख पूर्व पृष्ठ ६१ की २४वीं पक्ति के प्रागे छपना चाहिये था। सावधानता से अस्थान में छप
गया ।
पृष्ठ १८३, पं० २ - श्री म० देवे' के स्थान में 'श्रो मा० देवे' शोधें ।
पृष्ठ १८५, पं० ε- 'प्रो० भ० दा० साठे' के स्थान में 'श्री क० दा० साठे' शोधें ।