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________________ 855 संस्कृत व्याकरण-शास्त्रका इतिहास बात सोचता हूं क्योंकि यह अंश सर्वथा अप्रकाशित है । १-३ श्रध्याय बाद में ही लूगा । कार्य में समय तथा श्रम दोनों अपेक्षित हैं । किन्तु व्याकरण सम्बन्धी साहित्य में इस ग्रन्थ का द्वितीय स्थान है- इसमें सन्देह नहीं'। इधर स्वास्थ्य में गड़बड़ी के कारण भी मेरे कार्य में ५. कुछ गतिरोध हुआ है फिर भी प्राशा करता कि यह दीर्घ कार्य पूरा हूं कर पाऊंगा । 3 २ * १० १५ १ योग्य सेवा से सूचित करें। POOR S सेवायाम = ি क जी । पूजनीय गुरु सादर नमस्ते आपका कपाकाङ्क्षी दयानन्द भार्गव 3.३११ संप (५०) श्री विजयपाल शास्त्री का पत्र श्रश्म् १८६८ टिप्पण्यां जाम्बवती विजयस्येति कृत्वा पद्यमेक प्रदर्शितम् IRIFES क लोल सविनय निवेद्यते यत् श्री श्रीशचन्द्र चक्रवति भट्टाचार्येण संस्कर तार्या (सम्पादितायां) भाषावृत्ती प्रांत (१.१.१५) सूत्रस्य पाद : एकूण FEST FE TE 1545 1 अहो अहं नमो मा यदधत्य मध्यया । उल्लास्य नयने दीर्घे साकचिमहमोक्षितः T १. यह पद्य प्रस्तुत संस्करण (सं० २०४१ ) के तृतीय भाग के पर उद्धृत कर दिया है । टिप्पणी में पं० विजयपाल शास्त्री के इस ०६ संकेत कर दिया है ! Y ! लक ल इति जाम्बवतीविजयकाव्ये जाम्बवती दर्शनोत्तरं कृष्णस्योक्तिः । -प्रोत इत्यस्योदाहरणं भाषावृत्ती-प्रह्मे ग्रहम् इति दत्तमस्ति । तदुद्दिश्यैव सम्पादकेनेयं टिप्पर्ण समुट्टङ्किता । भाषावृत्तेदिं सस्करणं भवतः पुस्तकालयेऽस्तिः । तद् भवान् द्रष्टुमर्हति । इदं पद्यं भवत 15 इतिहासे तृतीयभागे पाणिनेः काव्य- सङ्कलने निविष्टं नास्ति । परीक्ष्याग्रे निवेशयितुं शक्यते । २५ प् पृष्ठ ४१ पत्र का ~7128
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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