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संस्कृत व्याकरण-शास्त्रका इतिहास
बात सोचता हूं क्योंकि यह अंश सर्वथा अप्रकाशित है । १-३ श्रध्याय बाद में ही लूगा । कार्य में समय तथा श्रम दोनों अपेक्षित हैं । किन्तु व्याकरण सम्बन्धी साहित्य में इस ग्रन्थ का द्वितीय स्थान है- इसमें सन्देह नहीं'। इधर स्वास्थ्य में गड़बड़ी के कारण भी मेरे कार्य में ५. कुछ गतिरोध हुआ है फिर भी प्राशा करता कि यह दीर्घ कार्य पूरा
हूं
कर पाऊंगा । 3
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योग्य सेवा से सूचित करें।
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सेवायाम
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पूजनीय गुरु सादर नमस्ते
आपका कपाकाङ्क्षी
दयानन्द भार्गव
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श्री विजयपाल शास्त्री का पत्र
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१८६८
टिप्पण्यां जाम्बवती विजयस्येति कृत्वा पद्यमेक प्रदर्शितम्
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सविनय निवेद्यते यत् श्री श्रीशचन्द्र चक्रवति भट्टाचार्येण संस्कर तार्या (सम्पादितायां) भाषावृत्ती प्रांत (१.१.१५) सूत्रस्य पाद
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अहो अहं नमो मा यदधत्य मध्यया । उल्लास्य नयने दीर्घे साकचिमहमोक्षितः
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१. यह पद्य प्रस्तुत संस्करण (सं० २०४१ ) के तृतीय भाग के पर उद्धृत कर दिया है । टिप्पणी में पं० विजयपाल शास्त्री के इस ०६ संकेत कर दिया है !
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इति जाम्बवतीविजयकाव्ये जाम्बवती दर्शनोत्तरं कृष्णस्योक्तिः । -प्रोत इत्यस्योदाहरणं भाषावृत्ती-प्रह्मे ग्रहम् इति दत्तमस्ति । तदुद्दिश्यैव सम्पादकेनेयं टिप्पर्ण समुट्टङ्किता । भाषावृत्तेदिं सस्करणं भवतः पुस्तकालयेऽस्तिः । तद् भवान् द्रष्टुमर्हति । इदं पद्यं भवत 15 इतिहासे तृतीयभागे पाणिनेः काव्य- सङ्कलने निविष्टं नास्ति । परीक्ष्याग्रे निवेशयितुं शक्यते ।
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पत्र का
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