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ग्यारहवां परिशिष्ट
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बतलाई हैं उन पर मैंने विचार किया। आपने जो प्रमाण दिये वे बिल्कुल ठीक हैं। इनके लिये मैं आपका कृतज्ञ हूं। यदि 'जैन साहित्य और इतिहास" को फिर से छपाने का अवसर आया तो उक्त न्यूनताएं दूर की जायेंगी। ___ आपका संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास कब तक प्रकाशित ५ हो जायगा । मैं उसकी प्रतीक्षा करूंगा। ___ आपने जो न्यूनताएं बतलाई हैं उन्हें एक लेख के रूप में यदि
आप 'अनेकान्त' या 'जैन सिद्धान्त भास्कर' में प्रकाशित करा दें, तो. ज्यादा अच्छा हो। जैन सम्प्रदाय के ये दो मुख्य पत्र हैं जिनमें ऐतिहासिक लेख विशेषरूप से प्रकाशित होते हैं। पहला 'सरसाना' (सहा: १० रनपुर) से और दूसरा 'भारा' (बिहार) से निकलता है। ___अमोधावृत्ति जहाँ तक मुझे स्मरण है 'भारतीय ज्ञानपीठ' बनारस से प्रकाशित होने का प्रबन्ध हो रहा था। उनके पास हस्तलिखित प्रति होगी।
प्रापका
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- नाथूराम प्रेमी
(३७) श्री पं० श्रीधर अण्णाशास्त्री का पत्र श्री पं० श्रीधर अण्णाशास्त्री जी ने मैत्रायणीय प्रातिशाख्य का उल्लेख .. तथा उसमें उल्लिखित ऋषि-नामों का निर्देश श्री पण्डित दामोदर सातवलेकर २०
१. 'जैन साहित्य और इतिहास' ग्रन्थ का परिवधित वा परिष्कृत द्वितीय संस्करण सन् १९५६ में छपा । इस संस्करण में श्री प्रेमीजी ने वार्षगण्य संबन्धी प्रकरण निकाल दिया। (इस संस्करण की एक प्रति श्री प्रेमीजी ने मुझे सप्रेम भेंट रूप में भेजी थी)। वार्षगण्य संबन्धी लेख हटाने की सूचना भी मैंने सं० व्या० शा० इ० के द्वितीय संस्करण सं० २०२० में दे दी है।
२. सन् १९५० में प्रकाशित होने पर सं० व्या० शा० इ० की एक प्रति श्री प्रेमी जी को भेज दी थी।
३. कार्य बाहुल्य से लेख रूप में इन पत्रों में किसी को नहीं भेजा।
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