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१५६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रबन्ध कर रहा हूं।
पवज्जन्ति-गउडवहो-८७१। पृ० २४४. (दूसरा संस्करण)।
टीका-वनाद् वनान्तरं प्रव्रजन्ति । व्यतिकरोभावः । पहम्मन्तीति पाठे हम्मतिः कम्बोजेषु प्रसिद्ध इति-पृ० २४५
यथास्थान लिख लें।
अब प्राप्त से मिलने को मन करता है । आप के ग्रन्थ का अन्तिम रूप देखना चाहता हूं। .. बारह देव-हरिवंश पर्व १, अध्याय ६ श्लोक ४७,४८ ।
धाता, अर्यमा, मित्र, वरुण, अंश, भग
इन्द्र, विवस्वान्, पूषा, पर्जन्य, त्वष्टा, विष्णु।' मुम्बई पूछते रहें कागज कब चलेगा। आप का ग्रन्थ डा० रेनो पेरिस को दिखाया था। तत्काल चाहते हैं।
यदि दीवनबहादुर जी ने मान लिया, तो आपके पास ही रहूंगा। नई खोज करते रहें। १५ [आगे का अन्य से सम्बद्ध कुछ अंश छोड़ दिया है]
भगवद्दत्त (२४) प्रोम् प्रोम्
नई देहली
५.२-४६ शीताः सपृषतोद्दामाः कर्कशा वान्ति मारुताः ।
हरिवंश, विष्णुपवं, १०॥३॥ सपृषतः सबिन्दवः । उद्दामाः महान्तः । सपृषतोद्दामा इति सन्धिराषः । नीलकण्ठ टीका २५ प्रयोग कर लें।
४०) रु० स्वीकार हैं । ग्रन्थ लाहौर सदृश छपे। कागज शोघ्र १. द्रष्टव्य, पृष्ठ १५० पर छपा पत्र और उसकी टिप्पणी १ ।