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भूमिका
[प्रथम संस्करण] मेरे 'संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास' का प्रथम भाग वि० सं० २००७ में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । उसके लगभग साढ़े ग्यारह वर्ष पश्चात् उसका यह द्वितीय भाग प्रकाशित हो रहा है। ___ यद्यपि इस द्वितीय भाग की रूप-रेखा भी उसी समय बन गई थी, जबकि प्रथम भाग लिखा गया था, परन्तु इस भाग के प्रकाशन के लिए किसी प्रकाशक के न मिलने, स्वयं प्रकाशन में असमर्थ होने, तथा अन्य अस्वस्थता आदि बहुविध विघ्नों के कारण इसका प्रकाशन इतने सुदीर्घ काल में भी सम्पन्न न हो सका । सम्भव है, इस भाग का प्रकाशन कुछ वर्षों के लिए और भी रुका रहता, परन्तु इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए अनायास देवी संयोग के उपस्थित हो जाने से इसका कथंचित् प्रकाशन इस समय हो सका।
दैवी संयोग-पूर्व प्रकाशित प्रथम भाग भी लगभग दो वर्ष से सर्वथा अप्राप्य हो चुका था। उसके पुनर्मुद्रण के लिए कथंचित् कुछ व्यवस्था करके कागज और प्रेसकापी प्रेस में भेज दी गई थी । इसी काल में मेरा देहली जाना हुआ, वहां डेराइस्माईल खां के भूतपूर्व निवासी श्री पं० भीमसेन जी शास्त्री से, जो सम्प्रति देहली में रहते हैं, मिलना हुअा। प्रथम भाग के पुनर्मुद्रण-सम्बन्धी बातचीत के प्रसङ्ग में श्री शास्त्री जी ने कहा कि यदि द्वितीय भाग, जो अभी तक नहीं छपा, पहले छपवाया जाये तो मैं ५०० रुपए की सहायता कर सकता हूं। मैंने श्री शास्त्री जी के सहयोग की भावना से प्रेरित होकर प्रथम-भाग के पुनर्मुद्रण का विचार स्थगित करके पहले द्वितीय भाग के प्रकाशन की व्यवस्था की।
देवी विघ्न-- मैं निरन्तर कई वर्षों से अस्वस्थ रहता आया हूं, पुनरपि अध्ययनरूपी व्यसन से बंधा हुआ कुछ न कुछ लिखना पढ़ना चलता रहता है । इसी के परिणाम स्वरूप इस भाग में प्रायः सभी अध्याय शनैः शनैः लिखे जा चुके थे। पूर्व निर्दिष्ट देवी संयोग से