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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१२-नारेरी वासुदेव वासुदेव कवि के प्रसंग में हम लिख चुके हैं कि संस्कृत मेन्युस्कृप्ट्स प्राइवेट लाइब्ररी साउथ इण्डिया के सूचीपत्र में नारेरी वासुदेव विरचित धातुकाव्य के दो हस्तलेख निर्दिष्ट हैं।
यह नारेरी वासुदेव वासुदेवविजय के ग्रन्थकार वासुदेव कवि से भिन्न है अथवा अभिन्न, इस विषय में हम निश्चयात्मक रूप से कुछ भी नहीं कह सकते।
१३–नारायण कवि (सं० १६१७-१७३३ ?)
नारायण कवि ने धातुपाठ के उदाहरणों को लक्ष्य में रखकर १० धातुकाव्य की रचना की । अपाणिनीयप्रमाणता के सम्पादक ने
धातुकाव्य का रचयिता प्रक्रियासर्वस्व और अपाणिनीयप्रमाणता आदि विविध ग्रन्थों का लेखक नारायण भट्ट है, ऐसा कहा है। यदि धातुकाव्य का रचयिता नारायण कवि नारायण भट्ट ही हो, तो इसका काल सं० १६१७ - १७३३ वि० के मध्य होना चाहिए।' .
इस काव्य का एक सव्याख्य हस्तलेख मद्रास शासकीय हस्तलेख संग्रह में विद्यमान है।' इसके प्रारम्भ का लेख इस प्रकार है -
'उदाहृतं पाणिनिसूत्रमण्डलं प्राग्वासुदेवेन तदूर्ध्वतोऽपरः । उदाहरत्यद्य वृकोदरोदितान् धातून् क्रमेणैव हि माधवसंश्रयात् ॥'
अर्थात्-पहले वासुदेव ने पाणिनि के सूत्रमण्डल को उदाहृत २०
किया। उसके पश्चात् मैं वृकोदर (भीमसेन) कथित धातुओं को माधव (माधवीया धातुवृत्ति ) के आश्रय से उदाहृत करता हूं।
इस श्लोक में निर्दिष्ट वासुदेव कौन है, यह निश्चितरूप से कहना कठिन है। तथापि हमारा विचार है कि यह भट्टभूम विरचित रावणार्जुनीय काव्य का व्याख्याता वासुदेव है।
१. द्र०- इसी ग्रन्थ का प्रथम भाग, पृष्ठ ६०५-६०८ (च० संस्क०) ।
२. द्र०-सूचीपत्र भाग ४, खण्ड १८ । इस हस्तलेख की क्रमसंख्या तथा सचीपत्र की पृष्ठ संख्या का निर्देश करना हम भूल गये । परन्तु क्रमसंख्या ३६८२, पृष्ठ ५४५१ से कुछ पूर्व है, इतना निश्चित है।