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४५२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - निरुक्त के इस पाठ में 'इमं ग्रन्थं समाम्नासिषुर्वेदं च वेदाङ्गानि च' पदों की व्याख्या में भारतीय तथा पाश्चात्त्य विद्वानों ने बहुत खींचातानी की है। निरुक्तवात्तिककार ने भारतीय परम्परा के अनुसार समाम्नासिषुः का ठीक अर्थ अभ्यस्तवन्तस्ते किया है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती की सूझ-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा ऋग्वेदभाष्य १११।२ में निरुक्त के उक्त वचन को उद्धृत करके व्याख्या करते हुए लिखा है
___ 'समाम्नासिषुः सम्यगभ्यासं कारितवन्तः'।'
स्वामी दयानन्द के इस अर्थ की पुष्टि निरुक्तवात्तिक के उक्त १० वचन से होती है।
निरुक्तवात्तिक के सम्बन्ध में श्री पं० भगवद्दत्त कृत 'वैदिक वाङ्मय का इतिहास' ग्रन्थ के 'वेदों के भाष्यकार' नामक भाग के पृष्ठ २१२-२१७ तथा पं० विजयपाल विद्यावारिधि द्वारा सम्पादित
इस ग्रन्थ का उपोद्धात देखना चाहिए। १५ इस ग्रन्थ का पूरा नाम निरुक्त-श्लोक-वात्तिक है । इसके कर्ता
का नाम नीलकण्ठ गार्य (संन्यासाश्रम में पद्म) था। मैंने इस ग्रन्थ का सम्पादन प्रारम्भ किया था, परन्तु शारीरिक अस्वस्थता होने के कारण इसे पूरा नहीं कर सका । अतः इसका सम्पादन पं० विजयपाल
विद्यावारिधि ने किया है और यह ग्रन्थ सं० २०३६ (सन् १९८२) २० में प्रकाशित हुआ है।
- ७ भरतमिश्र भरतमिश्र विरचित 'स्फोटसिद्धि' ट्रिवेण्ड्रम् से सन् १९२७ में प्रकाशित हो चुकी है।
- १. ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ ३८६ (रा० ल० क० ट्र० सं०) तथा २५ ऋग्वेदभाष्य भाग १ के प्रारम्भ में पृष्ठ ३६६ (रा० ल० क० ट्र० सं०)।
ऋग्वेदभाष्य (१११।२) के वैदिक यन्त्रालय अजमेर के छपे संस्करणों में 'सम्यगभ्यासार्थ रचितवन्तः' अपपाठ है । हस्तलेख के 'सम्यगभ्यासं कारितवन्तः' शुद्ध पाठ है। द्रः हमारे द्वारा सम्पादित रा० ल० क० ट्र० संस्करण, भाग १, पृष्ठ ४४७, टि० ३।
२. इस का प्रकाशन 'श्री सावित्री देवी बागडिया ट्रस्ट कलकत्ता' ने किया है। प्राप्ति स्थान-रामलाल कपूर ट्रस्ट बहालगढ़ (सोनीपत-हरयाणा)।