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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
भर्तृहरि का देशकाल आदि - भर्तृहरि के देशकाल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ ३८५ - ३६५ ( च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके हैं । अतः इस विषय में पाठक वही देखें ।
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वाक्यपदीय के विभिन्न संस्करण -- जब यह ग्रन्थ लिखा गया था, तब तक सम्पूर्ण वाक्यपदीय का संस्करण चौखम्बा संस्कृत सीरीज काशी से ही छपा था । यह संस्करण पाठ की दृष्टि से अत्यन्त भ्रष्ट होने पर भी प्रथम होने के कारण महत्त्व रखता है । ब्रह्माण्ड भर्तृहरि की स्वोपज्ञ - वृत्ति एवं वृषभदेव की व्याख्या के उपयोगी अंश सहित पं० चारुदेव जी शास्त्री द्वारा सम्पादित संस्करण रामलाल कपूर १० ट्रस्ट लाहौर से छपा था । द्वितीय काण्ड का भी स्वोपज्ञ - वृत्ति एवं पुण्यराजीय टीका युक्त पं० चारुदेव सम्पादित प्राधा भाग उक्त ट्रस्ट से प्रकाशित हुआ था ।
उत्तरवर्ती संस्करण - इसके पश्चात् वाक्यपदीय के अन्य संस्करण भी प्रकाशित हुए । जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं -
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सुब्रह्मण्य अय्यर - संस्करण - श्री डा० को० अ० सुब्रह्मण्य अय्यर ने वाक्यपदीय पर चिरकाल परिश्रम करके सम्पूर्ण ग्रन्थ का सम्पादन किया है । ब्रह्मकाण्ड पर इन्होंने वृषभदेव की पूर्ण टीका उपलब्ध कर ली । ब्रह्मकाण्ड और प्रकीर्णकाण्ड छप चुके हैं । ग्रव द्वितीय काण्ड छप गया है । इस महत्त्वपूर्ण कार्य का श्रेय डेक्कन कालेज पूना को प्राप्त २० हुआ है । अय्यर जी ने ब्रह्मकाण्ड का अङ्गरेजी अनुवाद वा व्याख्या
भी प्रकाशित की हैं ।
रघुनाथीय संस्करण - काशी के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री रघुनाथ जी ब्रह्मकाण्ड का स्वोपज्ञ विवरण एवं स्वटीका सहित सम्पादन किया है । इसी प्रकार द्वितीय काण्ड की उपलब्ध स्वोपज्ञ व्याख्या एवं २५ पुण्यराज की टीका के साथ स्वीकायुक्त संस्करण का सम्पादन किया है। ये दोनों काण्ड वाराणसेय (संप्रति सम्पूर्णानन्द) संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन से प्रकाशित हुए हैं ।
काशीनाथीय संस्करण - पूना के म० म० पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर ने वाक्यपदीय के कारिका -भाग का एक सुन्दर संस्करण ३० प्रकाशित किया है । यह पूता विश्वविद्यालय से छपा है ।