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________________ २० संस्कृत-व्याकरण- शास्त्र का इतिहास वही स्थिति हैं, जो प्रति पुराकाल में शब्दमात्र की थी ।' 'उषस्' का कण्ड्वादिगण में पाठ होने से उसे धातु मानकर उषस्यति प्रादि क्रियारूपों की, तथा उषस्यकः उषसिता उषसितव्यम् उषसनीयम् प्रदि कृदन्त शब्दों की सिद्धि दर्शाई जाती है और नाम मानकर उषाः ५ उषसौ उषसः आदि नामरूपों की निष्पत्ति की जाती है । 'उषस' शब्द का चादिगण (१।४।५७) में पाठ होने से उभयविध विभवियों से रहित यह निपातरूप अव्यय भी है । इसी अव्यय से उषस्त्यम् उपस्त्तनम आदि तद्धितरूप निष्पन्न होते हैं । अति पुराकाल में उपसर्गों की भी पृथक् सत्ता नहीं थी । वे मूलभूत १० शब्द के ही अवयव माने जाते थे । श्रतः प्रट् आदि का प्रागम भी उपसर्वांश से पूर्व होता था। आज भी सग्राम ( = सम् + ग्राम), निवास ( = नि + वास ), वीर ( = वि + ईर), व्यय (वि + प्रय) आदि कतिपय धातुओं में यह स्थिति देखी जाती है । इस विवेचना से स्पष्ट है कि व्याकरणशास्त्र के लक्षणबद्ध होने से १५ पूर्व प्रतिपद - प्रवचन द्वारा इसी प्रकार शब्दों का प्रवचन होता था । अत एव उस काल में उक्त प्रकार के मूलभूत शब्दों को क्रम - विशेष से जिस ग्रन्थ में संग्रह किया गया, वह 'शब्दपारायण' कहाता था । उत्तरकालीन स्थिति - उपरि निर्दिष्ट अति प्राचीन काल की स्थिति के पश्चात् उपसर्ग निपात और अव्ययों की स्वतन्त्र सत्ता स्वी२० कार को गई, परन्तु नाम और प्राख्यात पदों के मूलभूत शब्द पूर्ववत् समान रहे, अर्थात् एक ही शब्द से उभयविध विभक्तियों से संबद्धपदों १. साम्प्रतिक नामधातुप्रक्रिया भी इसी पुरातन स्थिति की ओर संकेत करती है । यथा अश्व इवाचरति प्रश्वति, गर्दभति । 1 १. 'पूर्व घातुरुपसर्गेण युज्यते पश्चात् साधनेन'; 'पूर्व हि धातु: साधनेन २५ युज्यते पश्चादुपसर्गेण' ये दोनों परिभाषाएं प्रति पुराकाल के सोपसर्ग और निरुपसर्गं द्विविध धातुओं की मूलस्थिति की ओर संकेत करती हैं । इस पर अगले १० वें सन्दर्भ में (पृष्ठ २४ ) विशेषरूप से लिखा है । ३. 'शब्दपारायणं रूढिशब्दोऽयं कस्यचिद् ग्रन्थस्य' । भर्तृहरिकृत महाभाष्यटीका, हस्तलेख पृष्ठ २१; पूना संस्क० पृष्ठ १७ ॥
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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