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मैत्रायणीय प्रातिशाख्यकार ४०१ ; ८. चारायणीय प्रातिशाख्यकार
४०३।
सामप्रातिशाख्य - ३६७; ६. सामप्रातिशाख्य प्रवक्ता - घररुचि ४०४, पिशलि ४०४; पुष्पसूत्र के दो पाठ ४०५, व्याख्याकारभाष्यकार ४०६, अन्ये शब्दोदाहृत ४०७, उपाध्याय अजातशत्रु ४०७. रामकृष्ण दीक्षित सूरि ४०७ ।
अथ प्रातिशाख्य - १०. अथर्व पार्षद - प्रवक्ता ४०८, काल ४०८, दो पाठ ४१०, शाखासम्बन्ध ४१०; बृहत्पाठ का संस्करण ४१०, ग्रन्यथा संशोधन ४११, पं० विश्ववन्धु की भूल ४१२ ; अथर्वप्रातिशाख्यभाष्य ४१४ । ११. अथर्वचतुरध्यायी प्रवक्ता ४१४, काल ४१५; १२. प्रतिज्ञा सूत्रकार ४१५; व्याख्याकार - प्रनः तदेव याज्ञिक ४१६ ; १३. भाषिकसूत्रकार ४१६, व्याख्याकार - महास्वामी ४१६, अनन्तदेव ४१६; १४. ऋषतन्त्रप्रवक्ता शाकटायन ४२०, प्रव्रजि४२०, प्रवक्तृत्व पर विचार ४२२: डा० सूर्यकान्त का विचार ४२२, हमारा विचार ४२२, प्रदवजि का देश ४२५,
तन्त्र का द्विविध पाठ ४२३; व्याख्याकार - प्रज्ञातनाम भाष्यकार ४२४. अज्ञातनाम वृत्तिकार ४२४, विवृत्तिकार ४२३, अज्ञात - नाम व्याख्याता ४२६; १५. लघुऋक्तन्त्रकार ४२६; १६. सामतन्त्रप्रवक्ता ४२६, भाष्यकार - भट्ट उपाध्याय ४२७ । १७. अक्षरतन्त्रप्रवक्ता ४२८, वृत्तिकार ४२८ १८. छन्दोग व्याकरण ४२६ ।
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२९ - व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार
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१. स्फोटायन ४३५; २. प्रौदुम्बरायण ४३२; ३ व्याडि ४३३; ४. पतञ्जलि ४३४; ५ भर्तृहरि ४३६; वाक्यपदीय नाम पर विचार ४३६, ग्रन्थपात ४३८, वाक्यपदीय के संस्करण ४४०, भाषातत्त्व और वाक्यपदीय ४४१ ; वाक्यपदीय के व्याख्याता - भर्तृहरि ४४१, स्वोपज्ञ व्याख्या के नाम ४४२, दो पाठ ४४३, वृति के व्याख्याकार - वृषभदेव से प्राचीन टीकाएं ४४३, वृषभदेव ४४४, धर्मपाल ४४४, पुण्यराज - ४४४, हेलाराज ४४५, फुल्लराज ४४७, गङ्गादास ४४७; ६. 'मण्डन मिश्र ४४८, काल ४४६; टीकाकार
१. यहां (पृष्ठ ४४८) पर प्रधान संख्या निर्देश में १ सख्या की भूल से वृद्धि हो गई है । सूचीपत्र में ठीक संख्या दी है । कृपया पाठक ठीक कर लें
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