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२३ - गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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गणपाठ का स्थान १४४, गणशब्द का अर्थ १४४, गण और समूह में भेद १४४, गणपाठ शब्द का अर्थ १४४, गणपाठ का सूत्रपाठ से पार्थक्य १४५, गणशैली का उद्भव १४६ ।
पाणिनि से पूर्ववर्ती - १. भागुरि १४७, २. शान्तनव' १४८ । ३. काशकृत्स्न १४८ । ४. प्रापिशलि १४६, पाणिनि से पूर्ववर्ती अन्य
गणकार १५० ।
५. पाणिनि - गणपाठ का अपाणिनीयत्व १५२, पाणिनीयत्व और उसमें प्रमाण १५४, गणपाठ के दो पाठ १५८, गणों के दो भेद १६३ । गणपाठ के व्याख्याता -- १. पाणिनि १६४, २ . नामपारायणकार १६५, ३. क्षीरस्वामी १६६, ४. गणपाठ -विवृत्तिकार १६६, ५. पुरुषोत्तमदेव १७०, ६. नारायणन्याय पञ्चानन १७१, ७ यज्ञेश्वरभट्ट १७०, अन्य ग्रन्थ -- १. ३लाक गणकार १७२, २. गणपाठ कारिकाकार १७३, गणकारिका व्याख्याता - रासकर १७३, ३. गणसंग्रहकार - गोवर्धन १७३, ४. गणपाठकार - रामकृष्ण १७३, ५. गणपाठ श्लोक १७४ ।
पाणिनि से उत्तरवर्ती - ६. कातन्त्र गणकार १७४; ७. चन्द्रगोमी १७६, गणपाठ की विशिष्टता १७६, स्वामी दयानन्द सरस्वती की चेतावनी १७६; ८० क्षपणक १८१ । ६. देवनन्दी १८१; गुणनन्दी १८१ । १०. वामन १८३ । ११. पाल्यकीर्ति १८३ । १२. भोजदेव १८७ । १३. भद्रेश्वर सूरि १८६. १४. हेमचन्द्रसूरि १६०, पाल्यकीर्ति का अनुकरण १६०, व्याख्या १९२; १५. वर्धमान १६२, गणरत्नमहोदधि-- के व्याख्याकार - गङ्गाधर १९३, गोवर्धन १९४, बालकृष्ण शास्त्री १९४; १६. क्रमदीश्वर १६४, १७. सारस्वतकार १९४; १८. वोपदेव १६६; १६. पद्मनाभदत्त १९६; २०. कुमारपॉल १६७; २१. श्ररुणदत्त १६८; २२. द्रविण वैयाकरण १६८; २३. पारायणिक १९८; २४. रत्नमति १६९; २५. वसुक्र १६६; २६. वृद्धवैयाकरण २००; २७. सुधाकर २००; [ मुग्धबोधीयगणपाठ प्रथम भाग पृष्ठ ७१७ द्र०]।
१. ' शन्तनु' के स्थान में सर्वत्र 'शान्तनव' होना चाहिये ।