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________________ गणपाठ के व्याख्याता पाणिनीय गणपाठ पर अनेक वैयाकरणों ने व्याख्याएं लिखी होंगी, परन्तु इस समय पाणिनीय गणपाठ पर कोई भी प्राचीन व्याख्या उपलब्ध नहीं होती । यज्ञेश्वर भट्ट की गणरत्नावली नामक एक व्याख्या मिलती है । इसका रचना काल वि० सं० १९३९ है ।' उसका मुख्य आधार भी वर्धमान कृत गणरत्नमहोदधि है । प्राचीन १० वाङ् मय के अवगाहन से गणपाठ पर अनेक व्याख्याग्रन्थों का परिचय मिलता है । हमें गणपाठ के जिन-जिन व्याख्यातानों अथवा व्याख्या में का बोध है, वे इस प्रकार हैं १ - पाणिनि ५ १६४ संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास २ - चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थः । स चाकृतिगणतां सुषामादेर्बोधयतीत्यत श्राह - श्रविहितलक्षण इत्यादि । न्यास ८|३|१०० ।। भाग ३, पृष्ठ १०९४ पाणिनि ने अपने सूत्रपाठ की और धातुपाठ की वृत्तियों का स्वयं १५ प्रवचन किया था और वह भी अनेकधा, यह हम पूर्व यथास्थान लिख चुके हैं। हमारा विचार है कि पाणिनि ने सूत्रपाठ और वातुपाठ की वृत्तियों के समान गणपाठ की किसी वृत्ति का भी प्रवचन किसी न किसी रूप में 'अवश्य किया था। इसमें निम्न प्रमाण हैं १ - काशिकाकार नद्यादि (४/२/६७) गण में पठित पूर्वनगरी की २० व्याख्या करके लिखता है ३० 'केचित् पूर्वनगिरी इति पठन्ति विच्छिद्य च प्रत्ययं कुर्वन्ति, पौरेयम्, वानेयम्, गैरेयम् इति तदुभयमपि दर्शनं प्रमाणम् ।' अर्थात् -- कई | व्याख्याता पूर्वनगरी पद के स्थान में ] पूर्वनगिरि पढ़ते हैं, और विच्छेद करके प्रत्यय करते हैं - पूर्-पौरेय, वन वानेय, २ गिरि-गैरेय । ये दोनों दर्शन ही प्रमाण है । इसकी व्याख्या करते हुए न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि ने लिखा है'उभयथाप्याचार्येण शिष्याणां प्रतिपादनात् !' भाग १, पृष्ठ ६५६ । अर्थात् - दोनों प्रकार [ पूर्वनगरी - पूर्वनगिरि ] से आचार्य द्वारा शिष्यों को प्रतिपादन करने से ( पढ़ाने से ) दोनों ही पाठ प्रमाण I १. इसका वर्णन इसी प्रकरण में आगे करेंगे ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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