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का जितना भी धन्यवाद करूं स्वल्प है । इन महानुभावों के इस विशिष्ट सहयोग से स्वास्थ्य-लाभ करने में जो महती सहायता प्राप्त हुई है, उसके ऋण से तो तभी कुछ सीमा तक उऋण हो सकता हूं. जब अपना शेष समय अधिक से अधिक वैदिक आर्ष वाङमय के अध्ययन-अध्यापन तथा अनुसन्धान कार्य में ही लगाऊं । प्रभु मुझे ऐसी आत्मिक, मानसिक तथा शारीरिक शक्ति प्रदान करें, जिससे मैं इस कार्य में सफल हो सकू।
२-अप्रतिम शल्यचिकित्सक श्री डा. कर्नल मिराजकर महोदय के प्रति कृतज्ञता प्रकाशन करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूं, जिन्होंने गुर्दे का आप्रेशन करते हुए न केवल अत्यन्त कौशल से ही कार्य किया, अपितु सम्पूर्ण चिकित्साकाल में मुझ पर पितृवत् वात्सल्यभाव रखा। उनकी इस कृपा से ही जहां मैंने पुनर्जीवन प्राप्त किया वहां इतना बड़ा महान् व्ययसाध्य शल्यचिकित्सा कार्य अपेक्षाकृत स्वल्पव्यय में सम्पन्न हो सका । निःसन्देह आपने मुझे पुनर्जीवन देकर मेरे परिवार को तो अनुगृहीत किया हो है, परन्तु में समझता हूं कि उससे कहीं अधिक मुझे पूर्ववत् सारस्वत सत्र में दीक्षित रहने योग्य बनाकर देश जाति और समाज की सेवा कर सकने का जो सौभाग्य प्रदान किया है, उसके लिए आपके प्रति जितना भी कृतज्ञताज्ञापन करूं, स्वल्प है।
३-जिस श्री रामलाल कपूर अमृतसर के परिवार के समस्त सदस्यों के साथ मेरा बाल्यकाल से सम्बन्ध है, जिनके सहयोग से शिक्षा पाई, कुछ कार्य करने योग्य हो सका, और जो सदा ही विविध प्रकार से मेरी सहायता करते रहते हैं, उनसे इस काल में न केवल आर्थिक सहयोग ही प्राप्त हुअा, अपितु माननीय श्री बा० हंसरास जी और श्री बा० प्यारेलाल जी ने आतुरालय में आकर मेरी देखभाल की और देहली में रहनेवाले भाई शान्तिस्वरूपजी, श्री भीमसेनजी, और श्री ब्रह्मदेवजी बरावर चिकित्सालय में आकर सदा देखभाल करते रहे, तथा आप्रेशन के दिन आदि से अन्त तक ५-६ घण्टे बराबर अस्पताल में विद्यमान रहे । इसी प्रकार चिकित्सा से पूर्व श्री माननीय भ्राता देवेन्द्रकुमार जी ने बम्बई में अनेक योग्य चिकित्सकों से निदान आदि कराने की पर्ण व्यवस्था की, और जिन्होंने श्री डा. कर्नल