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६१ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण . ७२१
पद्मनाभ के पिता का नाम दामोदरदत्त और पितामह का नाम श्रीदत्त था।
काल-पद्मनाथ ने पृषोदरादि-वृत्ति शक सं० १२६२ (वि० सं० १४२७) में लिखी है।
अन्य ग्रन्थ . पद्मनाभदत्त ने स्वीय परिभाषावृत्ति में जिन स्वविरचित ग्रन्थों का उल्लेख किया है, वे निम्न हैं
१-सुपमपञ्जिका ७-मानन्दलहरी टीका २-प्रयोगदीपिका (मय पर) ३-उणादिवृत्ति ८-छन्दोरत्न ४--धातुकौमुदी -प्राचारचन्द्रिका ५-यङलुग्वृत्ति १०-भूरिप्रयोग कोश ६-गोपालचरित ११-परिभाषावृत्ति इनमें व्याकरण-ग्रन्थों का वर्णन यथास्थान किया जायगा।
. सुपद्म के टीकाकार . .. १५ १-पद्मनाभदत्त-पद्मनाभ ने अपने व्याकरण पर स्वयं पञ्जिका नाम्नी टीका लिखी है।
२-विष्णुमिश्र - ४-श्रीधर चक्रवर्ती ३-रामचन्द्र ५-काशीश्वर ..
इन विद्वानों ने भी सुपन पर टीकाएं लिखी हैं । इन में विष्णु- २० मिश्र की सुपद्यमकरन्द टीका सर्वश्रेष्ठ है। . इस व्याकरण का प्रचार बंगाल के कुछ जिलों तक ही सीमित है।
१८-विनयसागर उपाध्याय (सं० १६५०. १७००).. अंचलगच्छाधिराज कल्याणसागर सूरीश्वर के शिष्य विनय-५२५ १ सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पैराग्राफ ६१। ....
२. द्र० - इसी (सं० व्या० इति०) ग्रन्थ के भाग.२, पृष्ठ ३४२ (सं० २०४१ का संस्क०.) में उद्धृत श्लोक । . .. .