________________
७२०
. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
नाम टीकाकार .. काल टीकाकानाम हस्तलेख संख्या १२-श्रीकाशीश ?- ? ८५६ १३-गोविन्दशर्मा ... ? शब्ददीपिका . ८५७
१४-श्रीवल्लभविद्यावागीश? .. बालबोधिनी ८६१ ५. १५-कातिकेय सिद्धान्तमित्र ? - सुबोधा ८६२
१६-मधुसूदन ? मधुमती ८६९ .
इनमें संख्या १२ का श्रीकाशीश पूर्वनिर्दिष्ट काशीश्वर (संख्या ५) से भिन्न व्यक्ति हैं, अथवा अभिन्न यह अज्ञात है ।
... 'वोपदेव का सं० व्या० को योगदान' नामक शोधप्रबन्ध में १० गोविन्द शर्मा का नाम गोविन्द विद्याशिरोमणि लिखा है । उपरि
निर्दिष्ट टीकात्रों के अतिरिक्त उक्त शोधप्रबन्ध में पृष्ठ ६४-६६ (टाइप कापी) पर निम्न नाम और मिलते हैं . नाम
टीका का नाम १७-वृषवदन चन्द्र तर्कालंकार प्रबोध . १८-गंगाधर तर्कवागीश सेतूसंग्रह १९-राधावल्लभ पञ्चानन सूबोधिनी २०-रत्तिकान्त तर्कवागीश ? २१-माधव तर्क सिद्धान्त . मुग्धबोध प्रदीप
रूपान्तरकार इन व्याख्याकारों ने मुग्धबोध के यथावस्थित पाठ पर ही व्याख्या - की, अथवा उसमें कुछ रूपान्तर भी किया यह अज्ञात है।
डा० बेल्वाल्कर ने अपने सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर' में लिखा है
'इसने (रामतर्क वागीश ने) कुछ स्वतन्त्रतापूर्वक मुग्धबोध में परिवृद्धि और परित्याग किया।' पैराग्राफ ८४। .
२०
२५ .
१७. पद्मनाभदत्त (सं० १४०० वि०) पद्मनाभदत्त ने सुपद्म नामक एक संक्षिप्त व्याकरण लिखा था। इस की उणादिवृत्ति में सुपद्मनाभ नाम मिलता है।'
१. सुपद्मनाभेन सुपद्मसम्मतं, विधः समग्रः सुगमं समस्यते। इण्डिया आफिस पुस्तकालय लन्दन का सूचीपत्र, ग्रन्थांक ८६१ । द्र०सं० व्या० इतिहास भाग २, पृष्ठ २७० (सं० २०४१ का संस्क०) ।