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________________ १० १० . आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण :७१३ का मिलता है। उससे ग्रन्थकार के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं होता । . . : . .१६-सहजकीति (सं० १६८१ वि०) सहजकीति ने प्रक्रियावातिक नाम्नी एक व्याख्या लिखी है । यह जैन मतावलम्बी था, और खरतर गच्छ के हेमनन्दनगणि का शिष्य ५ . था। लेखक ने ग्रन्थलेखनकाल स्वयं लिखा है'वत्सरे भूमसिद्धयङ्गकाश्यपीप्रमितिश्रिते। माघस्य शुक्लपञ्चम्यां दिवसे पूर्णतामगात् ॥' अर्थात् सं० १६८१ माघ शुक्ला पञ्चमी को ग्रन्थ पूरा हुआ। १७-हंसविजयगणि (सं० १७०८ वि०). ‘ हंसविजयगणि ने शब्दार्थचन्द्रिका नाम्नी व्याख्या लिखी है। यह जैन मतावलम्बी था, और विजयानन्द का शिष्य था। यह सं० १७०८ में विद्यमान था। यह टीका अति साधारण है। १८-जगन्नाथ (?) ... जगन्नाथ का ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं । इस का निर्देश धनेन्द्र नामक , टीकाकार ने किया हैं । इस टीका का नाम 'सारप्रदीपिका' है। ... इन टीकात्रों के अतिरिक्त सारस्वत व्याकरण के साथ दूरतः सम्बन्ध रखनेवाली कुछ व्याख्याएं और भी हैं । परन्तु वे वस्तुतः सारस्वतः के रूपान्तर को उपस्थित करती हैं । और कुछ में तो वह रूपान्तर. इतना हो गया है कि वह स्वतन्त्र व्याकरण बन गया है, यथा रामचन्द्राश्रम की सिद्धान्तचन्द्रिका।.............. --सारस्वत के रूपान्तरकार अब हम सारस्वत के रूपान्तरों को उपस्थित करनेवाली व्याख्याओं का उल्लेख करते हैं १-तर्कतिलक भट्टाचार्य (सं० १६७२ वि०) तर्कतिलक भट्टाचार्य ने सारस्वत का एक रूपान्तर किया, और उस पर स्वयं व्याख्या लिखी। यह द्वारिका बा द्वारिकादास का पुत्र था। इसका बड़ा भाई मोहन मधुसूदन था। इसने अपने रूपान्तर के के लिए लिखा है
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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