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७१२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१२-वासुदेवभट्ट (सं० १६३४ वि०) वासुदेवभट्ट ने प्रसाद नाम की एक व्याख्या लिखी थी । यह चण्डीश्वर का शिष्य था। वासुदेव ने ग्रन्थरचना-काल इस प्रकार
दिया है - ५ संवत्सरे वेदवह्निरसभूमिसमन्विते ।
शवौ कृष्ण द्वितीयायां प्रसादोऽयं निरूपितः' ॥
इस श्लोक के अनुसार सं० १६३४ आषाढ़ कृष्णा द्वितीया को सारस्वत प्रसाद' टीका समाप्त हुई ।
१३ रामभट्ट (सं० १६५० वि० के लगभग) १० रामभट्ट ने विद्वत्-प्रबोधिनी नाम्नी टीका लिखी है । इसने अपने
ग्रन्य में अपना और अपने परिवार का पर्याप्त वर्णन किया है। रामभट्ट के पिता का नाम 'नरसिंह' था, और माता का 'कामा' । यह मूलतः तैलङ्ग देश का निवासी था, संभवतः वारङ्गल का। वहां
से यह आंध्र में आकर बस गया था। उन दिनों वहां का शासक १५ प्रत. रुद्र था। इसके दो पुत्र थे-लक्ष्मीधर और जनार्दन । उनका
विवाह करके ७७ वर्ष की वय में वह तीर्थाटन को निकला। इस यात्रा में ही उसने यह व्याख्या लिखी। इस कृति का मुख्य लक्ष्य हैपवित्र तीर्थों का वर्णन । प्रत्येक प्रकरण के अन्त में किसी न किसी
तीर्थ का वर्णन मिलता है । यद्यपि यात्रा का पूर्ण वर्णन नहीं है, २० तथापि आज से ३५० वर्ष पूर्व के समाज का चित्र अच्छे प्रकार
चित्रित है। इसने रत्नाकर नारायण भारती क्षेमंकर प्रौर महीधर आदि का उल्लेख किया है।
१४-काशीनाथ भट्ट (सं० १६७२ वि० से पूर्व)
काशीनाथ भट ने भाष्य नामक एक टीका लिखी है। परन्तु यह २५ नाम के अनुरूप नहीं है । यह सम्भवतः सं० १६६७ से पूर्व विद्यमान
था। इस संवत् में बुरहानपुर में इस टीका की एक प्रतिलिपि की गई थी। द्र०-भण्डारकर इंस्टीटयू ट पूंना संन् १८८०-८१ के संग्रह का २६२ संख्या का हस्तलेख।
१५-भट्ट गोपाल (सं० १६७२ वि० से पूर्व) ३० भट्ट गोपाल की 'सारस्वत व्याख्या' का एक हस्तलेख सं० १६७२