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हैमव्याकरण का क्रम प्राचीन शब्दानुशासनों के सदृश नहीं है । इसकी रचना कातन्त्र के समान प्रकरणानुसारी है । इसमें यथाक्रम संज्ञा, स्वरसन्धि, व्यञ्जनसन्धि, नाम, कारक, षत्व, स्त्रीप्रत्यय, समास, आख्यात, कृदन्त और तद्धित प्रकरण हैं ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
११६७ से पूर्व हेमचन्द्र ने व्याकरण लिखा होता, तो वर्धमान उसका निर्देश अवश्य करता ।
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इन चारों का वर्णन अनुपद किया जायेगा ।
५ - धातुपाठ और उसकी धातुपारायण नाम्नी व्याख्या । ६ - गणपाठ और उसकी वृत्ति ।'
७ – उणादिसूत्र और उसकी स्वोपज्ञा वृत्ति ।
८ - लिङ्गानुशासन और उसकी वृत्ति ।
इन ग्रन्थों का वर्णन यथास्थान तत्तत् प्रकरणों में किया जायेगा ।
है व्याकरण के व्याख्याता
हेमचन्द्र
आचार्य हेमचन्द्र ने अपने समस्त मूल ग्रन्थों की स्वयं टीकाएं रची । उसने अपने व्याकरण की तीन व्याख्याएं लिखी हैं । शास्त्र में प्रवेश करनेवाले बालकों के लिये लघ्वी वृत्ति, मध्यम बुद्धिवालों के लिए मध्य वृत्ति, और कुशाग्रमति प्रौढ़ व्यक्तियों के लिये बृहती २५ वृत्ति की रचना की है । लघ्वी वृत्ति का परिमाण लगभग ६ सहस्र श्लोक है, मध्य का १२००० सहस्र श्लोक, और बृहती का १८ सहस्र
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व्याकरण के अन्य ग्रन्थ
१ - है मशब्दानुशासन की स्वोपज्ञा लघ्वी वृत्ति ( ६००० श्लोक परिमाण) ।
२ - मध्य वृत्ति ( १२००० श्लोक परिमाण) । ३ - बृहती वृत्ति (१८००० श्लोक परिमाण) । ४- - हैमशब्दानुशासन पर बृहन्न्यास ।
१. मुनिराज सुशीलविजयजी का लेख 'श्री जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ७, दीपो • त्सवी अंक, पृष्ठ ८४ ।
२. श्री जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ७, दीपोत्सवी प्रक, पृष्ठ ६६ ॥