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________________ आचार्य पाणिनि से प्रवचीन वैयाकरण ६६७ निर्वाण – आचार्य हेमचन्द्र का निर्वाण सं० १२२९ में ८४ वर्ष Satar में हुआ । आचार्य हेमचन्द्र का उपर्युक्त परिचय हमने प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ ( पृष्ठ ८३-६५) और मुनिराज सुशीलविजयजी के ‘कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य' लेख' के अनुसार दिया है । ८८ शब्दानुशासन की रचना - हेमचन्द्र ने गुजराज के सम्राट् सिद्ध- ५ राज के आदेश से शब्दानुशासन की रचना की। सिद्धराज का जयसिंह भी नामान्तर था ।" सिद्धराज का काल सं० १९५० - १९६६ तक माना जाता है । हैप शब्दानुशासनं हेमचन्द्रविरचितं सिद्ध हैमशब्दानुशासन संस्कृत और प्राकृत दोनों १० भाषाओं का व्याकरण हैं । प्रारम्भिक ७ अध्यायों के २८ पादों में संस्कृतभाषा का व्याकरण है । इसमें ३५६६ सूत्र हैं । ग्राठवें अध्याय में प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश आदि का अनुशासन है। आठवें अध्याय में समस्त १९१६ सूत्र हैं । जैन आगम की प्राकृतभाषा का अनुशासन पाणिनि के ढंग पर 'आम्' १५ कह कर समाप्त कर दिया है। इस प्रकार के अनेकविध प्राकृत भाषात्रों का व्याकरण सर्वप्रथम हेमचन्द्र ने ही लिखा है । जैनत्रसिद्धि के अनुसार हैमशब्दानुशासन की रचना में केवल एक वर्ष का समय लगा था । हैमबृहद्वृत्ति के व्याख्याकार श्री पं० चन्द्रसागर सूरि के मतानुसार हेमचन्द्राचार्य ने हैमव्याकरण को रचना संवत् १९६३ - २० ११९४ में की थी । हमारा विचार है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण की रचना सं० १९९६-१९९६ के मध्य की है । क्योंकि वर्धमान ने सं० १९९७ में गणरत्नमहोदधि लिखी है । यदि सं० १. श्री जैन सत्यप्रकाश' वर्ष ७ दीपोत्सवी श्रंक (१९४९) पृष्ठ ६१-१०६ । २. प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ ६० । ३. सं० १९५० पूर्व श्रीसिद्धराज जयसिंहदेवेन वर्ष ४६ राज्यं कृतम् । SP चिन्तामणि, पृष्ठ ७६ । इसका पाठान्तर भी देखें । ४. श्रीहेमचन्द्राचार्यैः श्रीसिद्धहेमाभिधानमभिनवं व्याकरणं सपादलक्षप्रमाणं संवत्सरेण रचयांचक्रे । प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ ६० ॥ ५. श्री पं० चन्द्रसागर सूरि प्रकाशित हैमबृहद्वृत्तिं भार्ग 2 की भूमिका पृष्ठ 'कौ' । 25 : २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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