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________________ ८५ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६७३ 'प्रबन्धचिन्तामणि' में एक प्राकृत गाथा इस प्रकार उद्धृत हैपणसयरी वाससयं तिन्निसयाई अइक्कमेऊण । विक्कमकालाऊ तमो वलीहभंगो समुपन्नो ॥ यही गाथा पुरातनप्रबन्धसंग्रह में भी पृष्ठ ८३ पर उद्धृत है । .. इस गाथा में भी विक्रम से ३७५ वर्ष पीछे ही वलभीभंग का ५ उल्लेख है। ५. अनेकान्तजयपताका (बड़ोदा, सन् १९४०) की अंग्रेजी भूमिका पृष्ठ १८ पर एक जैन गाथा उद्धृत है वोरामो वयरो वासाण पणसए दससएण हरिभद्दो । तेहि बपभट्टी अहिं पणयाल वलहि खरो॥ इस गाथा के अनुसार भी व तभीभंग वार संवत् ८४५ (=वि० सं० ३७५) में हुआ था । ६. प्रभावकचरित में लिखा हैश्रीवीरवत्सरादथ शतादष्टके चतुरशीतिसंयुक्ते। जिग्ये मल्लवादी बौद्धांस्तद् व्यन्तरांश्चापि ॥' इस के अनुसार महावीर संवत् ८८४ में मल्लवादी ने बौद्धों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था । वीर संवत् के आरम्भ के विषय में जैन ग्रन्थों में अनेक मत हैं । 'जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास' के लेखक ने विक्रम से ४७० वर्ष पूर्व वीर संवत् का प्रारम्भ मानकर वि० सं० ४१४ में मल्लवादी के शास्त्रार्थ का उल्लेख किया है। २० ___ यह काल संख्या ४, ५ के प्रमाणों से विरुद्ध है। यदि प्रबन्धकोश प्रबन्धचिन्तामणि, और पुरातनप्रबन्धकोश में दिया हया ३७५ वर्षमान महाराज विक्रम की मृत्यु के समय से गिना जाय (जिसकी श्लोक और गाथा के शब्दों से अधिक सम्भावना है) तो प्रभावकचरित का लेख उपपन्न हो जाता है। विक्रम का राजकाल लगभग .. ३६ वर्ष का था। १. निर्णयसागर संस्क० पृष्ठ ७४ । २. सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास के अन्त में विक्रम का राजकाल ६३ वर्ष लिखा है । सम्भव है, उस में वा उस के मूल में (जिसके आधार पर
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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