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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'अय॑म्' सूत्र की उपलब्धि होने वह पूज्यपादविरचित नहीं हो सकता। अब हम एक ऐसा प्रमाण उपस्थित करते हैं, जिससे इस विवाद का सदा के लिये अन्त हो जाता है । और स्पष्टतया सिद्ध हो जाताहै कि प्रौदीच्य संस्करण ही पूज्यपाद विरचित है, न कि दाक्षिणात्य संस्करण । यथा. 'पादावुपज्ञोपक्रम" सूत्र के दाक्षिणात्य संस्करण की शब्दार्णवचन्द्रिका टीका में 'देवोपज्ञमनेकशेषव्याकरणम्' उदाहरण उपलब्ध होता है। यह उदाहरण औदीच्य संस्करण की अभयनन्दी की महावृत्ति में भी मिलता है । इस उदाहरण से व्यक्त है कि देवनन्दी विरचित व्या१० करण में एकशेष प्रकरण नहीं था। दाक्षिणात्य संस्करण में 'चार्थे द्वन्द्वः सूत्र के अनन्तर द्वादशसूत्रात्मक एकशेष प्रकरण उपलब्ध होता है । औदीच्य संस्करण में न केवल एकशेष प्रकरण का अभाव ही है, अपितु उसकी अनावश्यकता का द्योतक सूत्र भी पड़ा है-स्वाभावि कत्वादभिधानस्यकशेषानारम्भः' । अर्थात् अर्थाभिधानशक्ति के स्वा१५ भाविक होने से एकशेष प्रकरण नहीं पढ़ा। इस प्रमाण से स्पष्ट है कि पूज्यपादविरचित मूल ग्रन्थ वही है, जिस में एकशेष प्रकरण नहीं है । और वह औदीच्य सस्करण ही है, न कि दाक्षिणात्य संस्करण । वस्तुतः दाक्षिणात्य संस्करण जैनेन्द्र व्याकरण का परिष्कृत रूपान्तर है। इसका वास्तविक नाम 'शब्दार्णव व्याकरण' है। पहले हम पूज्यपाद के मूल जैनेन्द्र व्याकरण अर्थात् औदीच्य संस्करण के विषय में लिखते हैं जैनेन्द्र व्याकरण की विशेषता - हम ऊपर लिख चुके हैं कि जैनेन्द्र के दोनों संस्करणों की टीकाओं में देवोपज्ञमनेकशेषव्याकरणम्" उदाहरण मिलता है । इस उदाहरण २० से व्यक्त होता है कि एकशेष प्रकरण से रहित व्याकरणशास्त्र की १ औदीच्य सं० ११४६७॥ दा० सं० १।४।११४॥ २. दा० सं० ११३॥६६॥ ३. औदीच्य सं० १।१।९७ सम्पादक के प्रमाद से मुद्रित ग्रन्थ में यह सूत्र वृत्त्यन्तर्गत ही छपा है । देखो पृष्ठ ५२ । ४. औ० सं० ११४६७॥ दा० स० १।४।११४॥ ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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