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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
'काशाकाशदशाङ्कुशम्' इति तालव्यान्ते चन्द्रगोमी ।
इस उल्लेख से ध्वनित होता है कि चान्द्रकोश का संकलन मातृकानुसार वर्णान्त्यक्रम से था । उणादिसूत्रों में भी इसी क्रम को स्वीकार किया है ।'
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डा० बेल्वाल्कर ने चन्द्रगोमी विरचित 'शिष्यलेखा' नामक धार्मिक कविता तथा 'लोकानन्द' नामक नाटक का भी उल्लेख किया
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है ।'
डा० हर्षनाथ मिश्र ने प्रार्थसाधनशतकम् ( काव्य और श्रार्यतारान्तरवलि विधि नाम के ग्रन्थों का भी उल्लेख किया है । "
चान्द्रवृत्ति
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निश्चय ही चान्द्रसूत्रों पर अनेक विद्वानों ने वृत्तिग्रन्थ रचे होंगे, परन्तु सम्प्रति वे अप्राप्य हैं। इस समय केवल एक वृत्ति उपलब्ध है, जो जर्मन देश में रोमन अक्षरों में मुद्रित है।*
उपलब्ध वृत्ति का रचयिता
यद्यपि रोमनाक्षर मुद्रित वृत्ति के कुछ कोशों में 'श्रीमदाचार्यधर्मदासस्य कृतिरियम्' पाठ उपलब्ध होता है, तथापि हमारा विवार है कि उक्त वृत्ति धर्मदास की कृति नहीं है, वह प्राचार्य चन्द्रगोमो की स्वोपज्ञवृत्ति है । हमारे इस विचार के पोषक निम्न प्रमाण हैं
१ - विक्रम की १२ वीं शताब्दी का जैन ग्रन्थकार वर्धमान सूरि २० लिखता है -
१. द्र० - पूर्व पृष्ठ ६४७ । २. सिस्टम्स् ग्राफ संस्कृत ग्रामर, पैरा नं०.४५ । ३. चान्द्रव्याकरणवृत्तेः समालोचनात्मकमध्यनम्, पृष्ठ ७ ।
४. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह ने इण्डियन एण्टीक्वेरी भाग २५, पृष्ठ १०६ के आधार पर लिखा है कि चान्द्रव्याकरण पर लगभग १५ वृत्ति व्या२५ स्थान आदि लिखे गये । श्री जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ७, दीपोत्सवी अंक
(१९४९) पृष्ठ ८१ ।
५. डा० ब्रुनो ने तिब्बती से इसका अनुवाद किया है। उन्होंने उसे सन् १९०२ में लिपिजिग में छपवाया है। सिस्टम्स् ग्राफ संस्कृत ग्रामर, पैरा० नं ० ४२ । ६. चान्द्रवृत्ति जर्मन संस्करण, पृष्ठ ५१३ ।