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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने कातन्त्रविस्तर पर निम्न व्याख्यानों
का उल्लेख किया है' -
२ - वामदेव - विद्वान् रचित 'मनोरमा' ।
३- श्रीकृष्ण - विरचित 'वर्धमान संग्रह ' ।
९- रघुनाथदास रचित 'वर्धमान प्रकाश' । ५ - गोविन्ददास विरचित 'वर्धमानानुसारिणी प्रक्रिया' ।
६ - श्रज्ञातनामा विद्वान् विरचित 'कातन्त्र प्रक्रिया' । ५ - प्रद्युम्न सूरि (सं० १३६६ वि०)
प्रद्युम्न सूरि नाम के विद्वान् ने दुर्गवृत्ति पर सं० १३६९ में एक व्याख्या लिखी । इस का परिमाण ३००० श्लोक माना जाता है । १० Satara के भण्डार में इसका हस्तलेख है । द्र० संस्कृत प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा, पृष्ठ १२२ ।
६ - गोल्हण (वि० सं० १४३६ से पूर्व )
गोल्हण ने दुर्गसिंह विरचित कातन्त्र टीका पर 'टिप्पण' लिखा है । इसका 'चतुष्क टिप्पणिका' नाम से एक हस्तलेख लखनऊ नगरस्थ १५ अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् के संग्रह में विद्यमान है । इसकी संख्या वर्गीकरण संख्या १०५ व्याकरण, प्राप्ति नं० ६२ है । इसमें केवल २२ पत्रे हैं । प्रायः प्रत्येक दो पत्रों पर क्रमसंख्या समान है । अर्थात् एक-एक संख्या दो-दो पत्रों पर पड़ी हुई है । द्विरावृत संख्यावाले पत्रों में एक पत्रा स्थूल लेखनी से लिखा हुआ है, दूसरा २० सूक्ष्म ( पतली ) लेखनी से । संख्या की द्विरावृत्ति तथा लेखनाभेद का निश्चित कारण समयाभाव से हम निश्चित नहीं कर सके । सम्भव है स्थूल लेखनी से लिखा पाठ दुर्ग टीका का हो और सूक्ष्म लेखनीवाला गोल्हण की टीका का ( अभी निश्चेतव्य है ) ।
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'संस्कृत प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा' के पृष्ठ १२२ २५ पर इसके दो हस्तलेखों का उल्लेख है । एक राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान जोधपुर में है । इसके पत्रों की संख्या १५४ हैं । दूसरा अहमदाबाद में है । इस की पत्र संख्या ३४८ है ।
टीकाकार का देश काल प्रज्ञात है । सं० प्रा० व्या० और कोश
की परम्परा ग्रन्थ (पृष्ठ १२२) में लिखा है कि इस में त्रिलोचनदास ३० १. कातन्त्र व्याकरणविमर्श, पृष्ठ २४-२५ ।