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________________ ६३२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ इस पाठ में वामन ने किसी ग्रन्थकार के मत का खण्डन किया है। कातन्त्र ३ । ३ । ३५ की दुर्गवृत्ति के 'कयमजोजागरत् ? अनेक. वर्णव्यवधानेऽपि लवुनि स्यादेवेति मतम्' पाठ के साथ काशिका के पूर्वोक्त पाठ को तुलना करने से विदित होता है कि वामन यहां दुर्ग ५ के मत का प्रत्याख्यान कर रहा है। धातुवृत्तिकार सायण के मत में भी काशिकाकार ने यहां दुर्गवति का खण्डन किया है।' काशिका का वर्तमान स्वरूप सं०७०० से पूर्ववर्ती है, यह हम काशिका के प्रकरण में लिख चके हैं । अतः यह दुर्गसिंह की उत्तर सोमा है । __ ५० गुरुपद हालदार ने 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' में लिखा है १० कि दुगसिंह काशिका के पाठ उद्धृत करता है। हमने दुर्ग कातन्त्र वृत्ति की काशिका के साथ विशेष रूप से तुलना की, परन्तु हमें एक भी ऐसा प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह सिद्ध हो सके कि दुर्ग काशिका को उद्धृत करता है। दोनों वृत्तियों के अनेक पाठ समान हैं, परन्तु उनसे यह सिद्ध नहीं होता कि कौन किसको उदधत करता १५ है। ऐसी अवस्था में काशिका के पूर्व उद्धरण और सायण के साक्ष्य से यही मानना अधिक उचित है कि दुर्गसिंह की कातन्त्रवृत्ति काशिका से पूर्ववर्ती है । ___ दुर्गसिंहविरचित वृत्ति का उल्लेख प्रबन्धकोश पृष्ठ ११२ पर मिलता है। अनेक दुर्गसिंह संस्कृत वाङमय में दुर्ग अथवा दुर्गसिंह-विरचित अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । उनमें तीन ग्रन्थ प्रधान हैं-निरुक्तवृत्ति, कातन्त्रवृत्ति, और कातन्त्रवृत्ति-टीका। कातन्त्रवृत्ति और उसकी टीका का रच यिता दोनों भिन्न-भिन्न ग्रन्थकार हैं। पं० गुरुपद हालदार ने कातन्त्र२५ वृत्ति-टीकाकार का नाम दुर्गगुप्तसिंह लिखा है। उन्होंने तोन दुर्गसिंह १. यत्त कातन्त्र मतान्तरेणोक्तम-इत्यवदीर्घत्वयोः अजीजागरत इति भवतीति तदप्येवं प्रत्युक्तम् वृत्तिकारात्रेयवर्धमानादिमिरप्येतद् दूषितम् । पृष्ठ २६५। २. सूत्रे वृत्तिः कृता पूर्व दुर्गसिंहेन धीमता । विसूत्रे तु कृता तेषां वास्तु ३० पालेन मन्त्रिणा ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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