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५८० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ६. रामदेव मिश्र (सं० १११५-१३७० वि० के मध्य)
रामदेव मिश्र ने काशिका की 'वृत्तिप्रदीप' नाम्नी व्याख्या लिखी है। इसके हस्तलेख डी० ए० वी० कालेजान्तर्गत लालचन्द पुस्तकालय लाहोर तथा मद्रास और तजौर के राजकीय पुस्तकालयों में विद्यमान हैं।
कमलेश कुमार अनुसन्धाता, शिवकुमार छात्रावास कमरा नं० ६५, सं० वि० वि० वाराणसी का १६-७-७८ का एक पत्र प्राप्त हुआ है उसमें 'वृत्तिप्रदीप' के हस्तलेखों का विवरण इस प्रकार दिया
"यह वृत्तिप्रदीप अभी तक दो ही जगहों में देखने को मिला है। एक प्रतिलिपि सरस्वती भवन संस्कृत वि० वि० वाराणसी में है और दूसरी प्रति गवर्नमेण्ट ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्टस् लायब्रेरी मद्रास-५ में उपलब्ध है । संस्कृत विश्वविद्यालय (वाराणसी) की प्रतिलिपि गवर्नमेण्ट संस्कृत कालेज त्रिपुरीथुरा अर्णाकुलम् से मंगवाई गई है, ऐसा यहां के रजिस्टर में उल्लिखित है । लेकिन मुझे त्रिपुरीथुरा से कोई सही उत्तर नहीं प्राप्त हुआ कि यह ग्रन्थ मूल रूप से हस्तलेख में वहां प्राप्त है । होशियारपुर में मलियालम लिपि में द्वितीयाध्याय पर्यन्त सुरक्षित है । ऐसी सूचना प्राप्त हुई है । सरस्वती महल लायब्रेरी तजौर के ग्रन्थाध्यक्ष के पत्र से ज्ञात हुआ कि यह ग्रन्थ वहां नहीं है।"
इस के पश्चात् कमलेश कुमार से कोई संपर्क नहीं हो सका। कमलेश कुमार ने वृत्तिप्रदीप पर कुछ कार्य किया वा नहीं, इस विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है।
काल-रामदेवविरचित 'वृत्तिप्रदीप' के अनेक उद्धरण माधवीया २५ धातुवृत्ति में उपलब्ध होते हैं। अतः रामदेव सायण (संवत् १३७२
१४४४) से पूर्ववर्ती है । यह इसकी उत्तर सीमा है। सायण 'धातुवृत्ति' पृष्ठ ५० में लिखता है-हरदत्तानुवादी राममिश्रोऽपि । इससे प्रतीत होता है कि रामदेव हरदत्त का उत्तरवर्ती है ।
रामदेव के विषय में इससे अधिक कुछ ज्ञात नहीं ।
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१. देखो-पृष्ठ ३४, ५० इत्यादि ।