________________
श्रष्टाध्यायी के वृत्तिकार,
१.
पाणिनि ( २९०० वि० पूर्व )
पाणिनि ने स्वोपज्ञ, 'अकालक' व्याकरण का स्वर्ये अनेक वार प्रवचन किया था महाभाष्य १ ४ १ में लिखा है
3
11
४७६
13
कथं त्वेतत् सूत्रं पठितव्यम् । किमाकडाराबेका संज्ञा, श्राहोस्वित् प्राक्कडारात् परं कार्यमिति । कुतः पुनरयं सन्देहः ? उभयथा ५ ह्याचार्येण शिष्याः सूत्रं प्रतिपादिता: केचिदाकडारादेका संज्ञेति, केचित् प्राक्कडारात् परं कार्यमिति ।
.
२ - काशिका
•
४।१।११७ में लिखा है -
'शुङ्गाशब्दं स्त्रीलिङ्गमन्ये पठन्ति ततो ढकं प्रत्युदाहरन्ति शौङ्गय इति । द्वयमपि चैतत् प्रमाणम्, उभयथा सूत्रप्रणयनात् । ३ - काशिका ६ । २ । १०४ में उदाहरण दिये हैं- 'पूर्वपाणिनीयाः, श्रपरपाणिनीया: । इन से पाणिनि के शिष्यों के दो विभाग : दर्शाए हैं ।
१०
इन उपर्युक्त वचनों से स्पष्ट है कि सूत्रकार ने अपने सूत्रों का स्वयं अनेकधा प्रवचन किया था। सूत्रप्रवचन- काल में सूत्रों की वृत्ति, १५ उदाहरण, प्रत्युदाहरण दर्शाना आवश्यक है । क्योंकि इनके विना सूत्रमात्र का प्रवचन नहीं हो सकता, अथवा वह निरर्थक होगा । अतः यह श्रापाततः स्वीकार करना होगा कि पाणिनि ने अपने सूत्रों की स्वयं किसी वृत्ति का भी अवश्य प्रवचन किया था । पाणिनि के शिष्यों ने सूत्रपाठ के समान उस का भी रक्षण किया । इसकी पुष्टि २० निम्नलिखित प्रमाणों से भी होती है
817
..
१ - भर्तृहरि 'इग्यण: संप्रसारणम् ( ० १ ११४५ ) सूत्र के विषय में 'महाभाष्यदीपिका' में लिखता है - 63 'उभयथा ह्याचार्येण शिष्याः प्रतिपादिताः केचिद् वाक्यस्य, केचिद्वर्णस्य |
D.*
21 122 193425B 1 T
२५
९०१ म
अर्थात् - पाणिनि ने शिष्यों को इग्यणः संप्रसारणम् सत्र के दो श्रर्थं पढ़ाये हैं । किन्हीं को 'यणाः स्थाने इक इस वाक्य की सम्प्रसारण संज्ञा बताई, और किन्हीं को यण् के स्थान पर होनेवाले इक् वर्ण की
1
18318 7 150. P ०६