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४६८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास का प्रकाण्ड पण्डित था । वैयाकरण निकाय में भर्तृहरि के पश्चात् यही एक प्रामाणिक व्यक्ति माना जाता है। काशी के वैयाकरणों में किंवदन्ती है कि नागेश भट्ट ने महाभाष्य का १८ वार गुरुमुख से अध्ययन किया था। आधुनिक वैयाकरणों में नागेश भट्ट विरचित महाभाष्यप्रदीपोद्योत, लघशब्देन्दुशेखर और परिभाषेन्दुशेखर ग्रन्थ अत्यन्त प्रामाणिक माने जाते हैं।
नागेश भट्ट ने महाभाष्यप्रदीपोद्योत में 'लघुमञ्जूषा और 'शब्देन्दुशेखर' को उद्धृत किया है। पाम एकान्तर सूत्र ने शन्देन्दु
शेखर में उद्योत भी उद्धृत है। अतः सम्भव है कि दोनों की स्वना १० साथ-साथ हुई हो।
काल
सहायक-प्रयाग के समीपस्थ शृङ्गवेरपुर का राजा रामसिंह नागेश भट्ट का वृत्तिदाता था।
नागेश भट्ट कब से कब तक जीवित रहा, यह अज्ञात है । अनु१५ श्रुति है कि सं० १७७२ में जयपुराधीश ने जो अश्वमेध यज्ञ किया था,
उसमें उसने नागेशभट्ट को भी निमन्त्रित किया था। परन्तु नागेश भट्ट ने संन्यासी हो जाने, अथवा क्षेत्रनिवासवत के कारण यह निमन्त्रण स्वीकार नहीं किया। भानुदत्तकृत 'रसमञ्जरी' पर नागेश
भट्ट की एक टीका है। इस टीका का हस्तलेख इण्डिया प्राफिस २० लन्दन के पुस्तकालय' में विद्यमान है । उसका लेखनकाल संवत
१७६६ वि० है। देखो-ग्रन्थाङ्क१२२२ । वैद्यनाथ पायगुण्ड का पुत्र बालशर्मा नागेश भट्ट का शिष्य था। उसने धर्मशास्त्री मन्नुदेव की सहायता और हेनरी टामस कोलबुक की आज्ञा से 'धर्मशास्त्रसंग्रह' ग्रन्थ रचा था। कोलबुक सन् १७८३-१८१५ अर्थात् वि० संवत्
२५ १. अधिक मञ्जूषायां द्रष्टव्यम् । प्रदीपोद्योत ४ । ३ । १०१ ॥
२. शब्देन्दुशेखरे निरूपितमस्माभिः । प्रदीपोद्योत २ ॥१॥ २२ ॥ निर्णयसागर संस्करण पृष्ठ ३६८ ।
३. प्लुतो नैवेलि भाष्यप्रदीपोद्योते निरूपितम् । भाग २, पृष्ठ ११०८ ।
४. देखो-'धर्मशास्त्रसंग्रह' का इण्डिया आफिस का हस्तलेख, ग्रन्थाङ्क ३० १५०७ का प्रारम्भिक भाग ।