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४३८ संस्कृत व्याकरण का इतिहास शोध प्रतिष्ठान पूना के हस्तलेख-संग्रह में विद्यमान है ।' इस के आदि में निम्न पाठ है
शेषावतं शेषांशं जगत्रितयपूजितम् । चक्रपाणि तथा नत्वा, पितरं कृष्णपण्डितम् ॥२॥
भ्रातरं च जगन्नाथं विष्णुशेषेण धीमता ।... ॥३॥ अन्त का पाठ इस प्रकार है
इति श्रीमच्छेषकृष्णपण्डितात्मजशेषविष्णुपंडितविरचितपरिभाषाप्रकाशे प्रथमः पादः ।
उपर्युक्त श्लोक में निदर्शित शेष चक्रपाणि सम्भवतः शेष विष्णु १० का पितामह अथवा ताऊ (पिता का बड़ा भाई) होगा, क्योंकि उसका निर्देश पिता कृष्ण से पूर्व किया है अथवा चाचा भी हो सकता है ।
'इण्डिया आफिस लन्दन' के पुस्तकालय में 'शेष अनन्त' कृत 'पदार्थ-चन्द्रिका' का संवत् १६५८ का हस्तलेख है। देखो-ग्रन्थाङ्क
२०८६ । उसमें शेष अनन्त अपने गुरु का नाम शेष शार्ङ्गधर लिखता १५ है। शेष नारायण का एक शिष्य नागोजि पुत्र शेष रामचन्द्र है, यह
हम पूर्व लिख चुके हैं । हमारा विचार है कि ‘पदार्थ-चन्द्रिका' का कर्ता अनन्त लक्ष्मीधर का पुत्र अनन्त है। शेष नागोजि सम्भवतः नागनाथ है। उसका पुत्र रामचन्द्र है । रामचन्द्र का गुरु प्रसिद्ध महाभाष्य टीकाकार शेष नारायण है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। 'नागरी प्रचारिणी सभा काशी' के हस्तलेखसंग्रह में शेष गोविन्द कृत 'अग्निष्टोमप्रयोग' का एक पूर्ण हस्तलेख है । उसके ६६ वें पत्रे पर काल (संभवतः लिपिकाल) सं० १८१० वि० लिखा है।
इस प्रकार शेष-वंश के ज्ञात पांच व्यक्ति 'चक्रपाणि' 'विष्णुशेष' जगन्नाथ, अनन्त-गुरु 'शेष शाङ्गवर' और अग्निष्टोमप्रयोगकृत 'शेष २५ गोविन्द' का सम्बन्ध इस वंशावली में जोड़ना शेष रह जाता है।
इस वश से सम्बन्ध रखनेबाली एक प्रमुख गुरुशिष्य-परम्परा का चित्र निम्न प्रकार है
१. द्र-सूचीपत्र व्याकरण विभाग, भाग १, पष्ठ २३३, हस्तलेख संख्या ३०० (४८२॥ १८८४-८७) सन् १९३८ में मुद्रित । ३. २. देखो-पूर्व पृष्ठ ४३६ की टिप्पणी १ ।