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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
महाराज उदयन का समकालिक हो । अतः भारतीय इतिहास के अनुसार भास का काल विक्रम से लगभग १५०० वर्ष पूर्व है ।
इस यतः समुद्रगुप्त ने पतञ्जलि का वर्णन भास से पूर्व किया है, लिये उसका काल १५०० वि० पूर्व से अवश्य ही पूर्व होना चाहिये । उक्त मत का साधक प्रमाणान्तर
श्रायुर्वेदीय चरक संहिता में लिखा है कि इस काल में अर्थात कलि के प्रारम्भ में मनुष्यों की औसत आयु १०० वर्ष है ।' प्रत्येक - १०० वर्ष के पश्चात् मनुष्य की औसत आयु में एक वर्ष का ह्रास होता है ।"
महाभाष्यकार पतञ्जलि ने प्रथमाह्निक में लिखा है-कि पुनरद्यत्वे यः सर्वथा चिरं जीवति वर्षशतं जीवति ।
इससे स्पष्ट है कि भाष्यकार के समय मनुष्य की प्रायिक आयु १०० वर्ष नहीं थी ।
चरक - वचन का उपोद्बलक बाह्य साक्ष्य - चरक संहिता में मनुष्य १५ कीं श्रायु का जो निर्देश किया है, और उत्तरोत्तर प्रायु ह्रास के जिस वैज्ञानिक तत्त्व का संकेत किया है, उसका साक्ष्य अभारतीय ग्रन्थों में भी मिलता है | बाइबल में लिखा है
हमारी आयु के बरस सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी बरस भी हों, तो भी उन पर का घमण्ड कष्ट और व्यर्थ बात २० ठहरता है।
इससे स्पष्ट है कि ईसामसीह के समय मनुष्य की प्रायिक प्रायु ७० वर्ष की मानी जाती थीं । भारतीय ऐतिहासिक कालगणनानुसार ईसामसीह का काल कलि संवत् ३१०० में है । इस प्रकार कलिआरम्भ से लेकर ईसामसीह तक ३००० वर्ष में चरक के प्रति सौ ५ वर्ष में १ वर्ष के ह्रास के नियमानुसार ३० वर्ष का ह्रास होना स्वाभाविक है । इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि चरक संहिता
१. वर्षशतं खल्वायुषः प्रमाणमस्मिन् काले । शारीर ६।२६ ॥
२. संवत्सरे शते पूर्णे यात संवत्सरः क्षयम् । देहिनामायुषः काले यत्र यन्मानमिष्यते । विमान ३।३१ ॥ ३. पुराना नियम, भजन संहिता अ० ε० पृष्ठ ५६७, मिशन प्रेस इलाहाबाद, सन् १९१६ ।