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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - अनुपदकार और पदशेषकार दोनों एक ही हैं, अथवा भिन्न व्यक्ति है, यह विचारणीय हैं। . महाभाष्य कार को 'पदकार' क्यों कहते हैं ? इस विषय में हम निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते । महाभाष्य में पाणिनीय सूत्रों के प्रायः प्रत्येक पद पर विचार किया है । संभव है इसलिये महाभाष्यकार को 'पदकार' कहा जाता हो । शिशुपालवध के 'अनुत्सूत्रपदन्यासा" इत्यादि श्लोक की व्याख्या में बल्लभदेव लिखता हैपदं शेषाहिविरचितं भाध्यन् । बल्लभदेव ने 'पद' का अर्थ पतञ्जलि
विरचित महाभाष्य' किस आधार पर किया, यह अज्ञात है। यदि यह १० अर्थ ठीक हो, तो काशिका और भाष्यव्याख्याप्रपञ्च में निर्दिष्ट
'पदशेषकार' का अर्थ 'महाभाष्य-शेष का रचयिता' होगा । जैसे 'त्रिकाण्ड शेष' अमरकोष का शेष है ।
वंश और देश-पतञ्जलि ने महाभाष्य जैसे विशालकाय ग्रन्थ में अपना किञ्चिन्मात्र परिचय नहीं दिया । अतः पतञ्जलि का १५ इतिवृत्त सर्वथा अन्वकारावृत है।
हम पूर्व लिख चुके हैं कि महाभाष्य के कुछ व्याख्याकार 'गोणिकापुत्र' शब्द का अर्थ पतञ्जलि मानते हैं। यदि वह ठीक हो पतञ्जलि को माता का नाम 'गोणिका' रहा होगा, परन्तु हमें यह मत ठीक प्रतीत नहीं होता। ___कुछ ग्रन्यकार 'गोनर्दीय' को पतञ्जलि का पर्याय मानते हैं । यदि उनका मत प्रामाणिक हो, तो महाभाष्यकार की जन्मभूमि गोनर्द होगी । गोन देश वर्तमान गोंडा जिले के आसमास का प्रदेश माना जाता है। एक गोनर्द देश कश्मीर में भी है। परन्तु गोनर्दीय
को पतञ्जलि का पर्याय मानने पर उसे प्राग्देशवासो मानना होगा। २५ क्योंकि गोनर्दोय पद में गोनर्द को एक प्राचां देशे से वद्ध संज्ञा होकर
छ - ईय प्रत्यय होता है । 'गोनद' शिव का नाम है, उससे भी गोनर्दीय शब्द उत्पन्न हो सकता है। परन्तु महाभाष्यकार शैवमतान्यायी थे, इसका कहीं से कुछ भी संकेत नहीं उपलब्ध नहीं होता,
यह हम पूर्व लिख चुके हैं । अतः हमारा विचार है कि गोनर्दीय ३०. १. २०११२॥
२. अष्टा० १३१७५।। ३. मत्स्य पुराण ११३॥ ४३ में गोनर्द प्राचजनपदों में गिना गया है। ४. पूर्व पृष्ठ ३४७ ।