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________________ २२० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हो गया था । शौनक ने अपने ऋक्प्रातिशाख्य और बृहद्देवता में यास्क का स्मरण किया है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।' अतः महाभारत तथा निरुक्त के अन्तःसाक्ष्य से विदित होता है कि यास्क का काल भारतयुद्ध के समीप था। इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि यास्क, शौनक, पाणिनि, पिङ्गल और कौत्स लगभग समकालिक व्यक्ति हैं अर्थात् इनका पौर्वापर्य बहुत स्वल्प है। अतः पाणिनि का काल भारतयुद्ध से लेकर अधिसीम कृष्ण के काल तक लगभग २५० वर्षों के मध्य है। पाणिनि का साक्षान्निर्देश-ऊपर उद्धृत प्रमाण संख्या ९-१३ में १० पाणिनि का साक्षान्निर्देश है। बौधायन श्रौतसूत्र के प्रवराध्याय में पाणिनि गोत्र का उल्लेख है । इस की पुष्टि मत्स्य और वायु पुराण के प्रमाणों से होती है। बौधायन आदि श्रौतसूत्रों की रचना तत्तत् शाखाओं के प्रवचन के कुछ अनन्तर हुई है । श्रौत, धर्म आदि कल्पसूत्रों के रचयिता प्रायः वे ही प्राचार्य हैं, जिन्होंने शाखाओं का प्रवचन किया था, यह हम न्याय-भाष्यकार वात्स्यायन और पूर्वमीमांसाकार जैमिनि के प्रमाणों से पूर्व दर्शा चुके हैं। भागुरि ऐतरेय आदि कुछ पुराण-प्रोक्त शाखाओं के अतिरिक्त सब शाखाओं का प्रवचन-काल लगभग भारतयुद्ध से एक शताब्दी पूर्व से लेकर एक शताब्दी पश्चात् तक है । वर्तमान में उपलब्ध शाखा, ब्राह्मण, २० आरण्यक, उपनिषद्, श्रौत-गृह्य-धर्म आदि कल्प सूत्र, दर्शन, आयुर्वेद, निरुक्त, व्याकरण आदि समस्त उपलब्ध वैदिक आर्ष वाङ्मय अधिकतर इसी काल के प्रवचन हैं। एक अन्य प्रमाण--ह्य नसांग ने अपने भारत भ्रमण में पाणिनि के प्रकरण में लिखा है-'ब्रह्मदेव और देवेन्द्र ने आवश्यकतानुसार २५ कुछ नियम बनाये, परन्तु विद्यार्थियों को उनका ठीक प्रयोग करना नहीं पाता था। जब मानवी जीवन १०० वर्ष की सीमा तक घट गया, तब पाणिनि का जन्म हुआ। आयुर्वेदीय चरक संहिता भारतयुद्ध काल न वैशम्पायन अपर १. पूर्व पृष्ठ २१७, टि०१, २ । २. पूर्व पृष्ठ २१८ टि ३, ४ में उद्धृत पाठ । ३. पूर्व पृष्ठ २१-२३ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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