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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
____-व्याडि नाम पाणिनीय गणपाठ ४।१।८० में, तथा दाक्षायण नाम गणपाठ ४।२।५४ में मिलता है ।
-सामवेदीय लघु-ऋक्तन्त्र व्याकरण में पाणिनि का साक्षात् उल्लेख मिलता है।'
१०–बौधायन श्रौतसूत्र प्रवराध्याय (३) में पाणिनि का साक्षात् निर्देश उपलब्ध होता है। यथा
भृगूणामेवादितो व्याख्यास्यामः....."पङ्गलायनाः, वहीनरयः ..."काशकृत्स्नाः ...."पाणिनिर्वाल्मीकि..."प्रापिशलयः ।
२१-मत्स्य पुराण १९७१० में पाणिनि गोत्र का उल्लेख १० मिलता है।
१२–वायु पुराण ६१६६ में पाणिनि गोत्र का निर्देश किया है। पाणिन और पाणिनि एक ही हैं, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।
१३- ब्रह्मवैवर्तपुराण प्रकृति खण्ड अ० ४ श्लोक ६७ में पाणिनि को साक्षात् ग्रन्थकार कहा है । १५ इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि यास्क, शौनक, व्याडि, पाणिनि,
पिङ्गल और कौत्स आदि लगभग समकालिक हैं, इन में बहुत स्वल्प पौर्वापर्य है। यदि इन में से किसी एक का भी निश्चित काल ज्ञात हो जाए, तो पाणिनि का काल स्वतः ज्ञात हो जायगा । अतः हम प्रथम शौनक के काल पर विचार करते हैं___शौनक का काल-महाभारत आदि पर्व ११ तथा ४।१ के अनुसार जनमेजय (तृतीय) के सर्पसत्र के समय शौनक नैमिषारण्य में द्वादश वार्षिक सत्र कर रहा था । विष्णु पुराण ४२११४ में लिखा है कि जनमेजय के पुत्र शतानीक ने शौनक से आत्मोपदेश लिया था,
१. ऐचो वृद्धिरिति प्रोक्त पाणिनीयानुसारिभिः । पृष्ठ ४६ ।। २५ २. पैङ्गलायनप्रोक्त ब्राह्मण बौधायन श्रौत १७ में उद्धृत है-प्रप्येकां गां दक्षिणां दद्यादिति पैङ्गलायानिब्राह्मणं भवति ।
३. पाणिनिश्चैव व्यायाः सर्व एते प्रकीर्तिताः ।
४. बभ्रवः पाणिनश्चैव घानजप्यास्तथैव च । यहां 'धानञ्जयास्तथैव' शुद्ध पाठ चाहिए। .
५. पूर्व पृष्ठ १९४-१९५ । ३० ६. कणदो गौतमः कण्वः पाणिनिः शाकटायनः । ग्रन्थं चकार.........॥