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________________ १६४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास १. पाणिन-इस नाम का उल्लेख काशिका ६।२।१४ तथा चान्द्रवृत्ति २।२।६८ में मिलता है।' यह पणिन् नकारान्त शब्द से अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय होकर निष्पन्न होता है। इस का निर्देश अष्टाध्यायी ६।४।१६५ में भी मिलता है । 'पाणिनीय' शब्द की मूल प्रकृति भी पाणिन अकारान्त शब्द है। उस से 'छ' (ईय) प्रत्यय होकर 'पाणिनीय' प्रयोग उपपन्न होता है। अतः महाभाष्य में निर्दिष्ट पाणिनिना प्रोक्तं पाणिनीयम् वचन अर्थ प्रदर्शन परक है, विग्रह प्रदर्शक नहीं है। इकारान्त पाणिनि शब्द से इनश्च (४।२।११२) के नियम से प्रोक्तार्थ में अण् प्रत्यय होकर पाणिन शब्द उपपन्न होता है। यथा प्रापिशलि और काशकृत्स्नि शब्दों से 'आपिशलम्' और 'काशकृत्स्नम्' शब्द उपपन्न होते हैं।' भट्टोजि दीक्षित ने 'पाणिनि' शब्द से 'पाणिनीय' की उपपत्ति दर्शाई है, वह चिन्त्य है । तुलना करो पाणिन (छ) =पाणिनीय, पाणिनि (अण्) =पाणिन । १५ प्रापिशल (छ) =प्रापिशलीय प्रापिशलि (अण्) प्रापिशल । काशकृत्स्न (छ)=काशकृत्स्नीय, काशकृत्स्नि (अण) = काशकृत्स्न । २. पाणिनि-यह ग्रन्थकार का लोकविश्रुत नाम है। इस नाम की व्युत्पत्ति के विषय में वैयाकरणों में दो मत हैं (क) 'पणिन्' से अपत्यार्थ में अण् होकर 'पाणिन', उससे पुनः २० अपत्यार्थ में 'इ' होकर 'पाणिनि' प्रयोग निष्पन्न होता हैं। १. पाणिनोपज्ञमकालकं व्याकरणम् । तुलना करो-पाणिनो भक्तिरस्य पाणिनीयः । काशिका ४॥३॥६६॥ २. गाथिविदथिकेशिगणिपणिनश्च । ३. पाणिनीयमिति–पाणिनशब्दात् वृद्धाच्छः (४।२।११४) इति छः । न्यास ४।३।१०१॥ ४. आपिशलं काशकृत्स्नमिति - प्रापिशलिकाश २५ कृत्स्निशब्दाभ्यामनश्च (४।२।११२) इत्यण् । न्यास ४१३।१०१॥ इस पर विशेष विचार काशकृत्स्न के प्रकरण में (पृष्ठ ११७) कर चुके हैं। 'प्रापिशलीयम्', 'काशकृत्स्नीयम्' शब्द अकारान्त आपिशल और काशकृत्स्न से निष्पन्न होते हैं। ५. पाणिनोऽपत्यमित्यण् पाणिनः । पाणिनस्यापत्यं युवेति इन् पाणिनिः । कैयट महाभाष्यप्रदीप ११११७३॥ पणिनो गोत्रापत्यं ३० पाणिनः । बालमनोरमा भाग १ पृष्ठ ३९२ (लाहौर संस्करण)।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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