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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
नाम का निश्चय - हेमचन्द्र और केशव के उद्धरणों से प्रतीत होता है कि इस प्राचार्य का स्फोटायन नाम ठीक है, न कि । स्फोटायन |
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वैमानिक प्राचार्य-भरद्वाज आचार्य कृत यन्त्रसर्वस्व अन्तर्गत वैमानिक प्रकरण के प्रकाश में आने से स्फोटायन भी विमानशास्त्रविशेषज्ञ के रूप में प्रकट हुए हैं । भरद्वाज का एक सूत्र है
चित्रिण्येवेति स्फोटायनः ।
इस की व्याख्या में लिखा है
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तदुक्तं शक्तिसर्वस्वे - वैमानिकगतिवैचित्र्यादिद्वात्रिंशति क्रियायोगे १० एकैव चित्रिणी शक्त्यलमिति शास्त्रे निर्णीतं भवति इत्यनुभवतः शास्त्राच्च मन्यते स्फोटायनाचार्य: ।'
इस सूत्र और व्याख्या से स्पष्ट है कि स्फोटायन प्राचार्य एक महान् वैज्ञानिक आचार्य था ।
काल
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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्फोटायन का निर्देश होने से यह श्राचार्य विक्रम से २६५० वर्ष प्राचीन है, यह स्पष्ट है । यदि हेमचन्द्र और केशव का लेख ठीक हो और कक्षीवान् से उशिक्- पुत्र कक्षीवान् अभिप्रेत हो तो इसका काल इस से कुछ अधिक प्राचीन होगा । भरद्वाजीय विमानशास्त्र में स्फोटायन का उल्लेख होने से भो स्फोटायन २० का काल प्राचीन सिद्ध होता है । भरत मिश्र ने स्फोट-तत्त्व के प्रति - पादक का नाम श्रदुम्बरायण लिखा है । क्या कक्षीवान् और प्रौदुम्बरायण का परस्पर कुछ संबन्ध सम्भव हो सकता है ? यास्क ने अपने निरुक्त ११२ में औदुम्बरायण का मत उद्धृत किया है ।" वहां टीकाकारों के मतानुसार प्रौदुम्बरायण के मत में शब्द का अनित्यत्व २५ दर्शाया गया है । परन्तु वाक्यपदीय २।३४३ से ज्ञात होता है कि दुम्बरायण आचार्य शब्द नित्यत्ववादी है । वह एक प्रखण्ड वाक्य
१. बृहद् विमानशास्त्र, श्री स्वामी ब्रह्ममुनि सम्पादित, पृष्ठ ७४ । २. भगवदोदुम्बरायणाद्युपदिष्टा खण्डभावमपि
अपलपितम् । स्फोट
सिद्धि पृष्ठ १ ।
३. इद्रिय नित्यं वचनमौदुम्बरायणः -1