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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य कृतयुग के अन्त में अर्थात् विक्रमी से ६५०० साढ़े नौ सहस्र पूर्व हुआ था।
हमारी काल गणना-हमने इस इतिहास में प्राचीन काल गणना कृत, त्रेता और द्वापर युगों की दिव्यवर्ष संख्या को सौर वर्ष मान कर की है। हमारा विचार है, दिव्य वर्ष शब्द सौर वर्ष का पर्याय है । ५ तदनुसार कृत युग का ४८००, त्रेता का ३६०० और द्वापर का २४०० वर्ष परिमाण है। इसी प्रकार भारत युद्ध को विक्रमी से ३०४५ वर्ष पूर्व माना है।' इस पर विशेष विचार इसी ग्रन्थ में अन्यत्र किया जायगा। प्रतः ऊपर दिया हा इन्द्र का काल न्यूनातिन्यून है। वह इस से अधिक प्राचीन हो सकता है, न्यून नहीं । इन्द्र बहुत दीर्घजीवी १० था, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।
ऐन्द्र व्याकरण ऐन्द्र व्याकरण इस समय उपलब्ध नहीं है, परन्तु इसका उल्लेख अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । जैन शाकटायन व्याकरण १।२।३७ में इन्द्र का मत उद्धत है। लङ्कावतारसूत्र में भी ऐन्द्र शब्दशास्त्र १५ स्मत है। सोमेश्वरसूरि विरचित यशस्तिलक चम्पू में ऐन्द्र व्याकरण का निर्देश उपलब्ध होता है । हैमबृहद्वत्यवचूर्णि में ऐन्द्र व्याकरण का संकेत मिलता है। प्रसिद्ध मुसलमान यात्री अल्बेरूनी ने अपनी भारतयात्रा वर्णन में ऐन्द्र तन्त्र का उल्लेख किया है। देवबोध ने महाभारतरीका के प्रारम्भ में माहेन्द्र' नाम से ऐन्द्र व्याकरण का २० निर्देश किया है। वोपदेव ने कविकल्पद्रुम के प्रारम्भ में आठ वैयाकरणों में इन्द्र का नाम लिखा है । कवीन्द्राचार्य सरस्वती के पुस्तकालय का जो सूचीपत्र उपलब्ध हुआ है, उसमें व्याकरण की
१. भारत युद्ध का यह काल भारतीय इतिहास में सुनिश्चित है।
२. बरावा ङसीन्द्रस्याचि। ३. इन्द्रोऽपि महामते अनेकशास्त्रविदग्ध- २५ बुद्धिः स्वशास्त्रप्रणेता....."। टेक्निकल टर्स आफ संस्कृत ग्रामर पृष्ठ २८० (प्र० सं०) पर उद्धृत। ४. प्रथम प्राश्वास, पृष्ठ ६० ।
५. ऐन्द्रेशानादिषु व्याकरणेषु चाज्झलादिरूपस्यासिद्धेः । पृष्ठ १० । ६. अल्बेरूनी का भारत, भाग २, पृष्ठ ४० ।। ७. पूर्ण पृष्ठ ४६ पर उदधुत 'यान्युज्जहार......'श्लोक ।
३० ८. पूर्व पृष्ठ ६६ पर उद्धृत 'इन्द्रश्चन्द्रः...' श्लोक ।