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व्याकरणशास्त्र को उत्पत्ति और प्राचीनता
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४८. शाकल्यपिता-ऋ० प्रा० ४।४।। ४६. शांखमित्रि-शौ० च० ३७४॥ ५०. शांखायन-ते० प्रा० १५७॥ मै० प्रा० २॥३७॥ ५१. शूरवीर- ऋ० प्रा० वर्ग १३॥ ५२. शरवीर-सूत'-ऋ० प्रा० वर्ग ॥३॥ ५३. शैत्यायन-तै० प्रा० ५॥४०॥ १७॥१,४॥ १८॥२॥ मै० प्रा०
२५॥१॥२५॥६॥ २१६।२।३॥ ५४. शौनक-ऋ० प्रा० वर्ग ११॥ वा० प्रा० ४।१२२।। अथ०
प्रा० ११२॥ शौ० च० १८॥ २॥२४॥ ५५. स्थविर कौण्डिन्य-तै० प्रा० १७॥४॥' ५६. स्थविर शोकल्य-ऋ० प्रा० २०८१॥ ५७. सांकृत्य-तै० प्रा० ८।२०॥ १०॥२१॥ १६।१६।। मै०
प्रा० ८॥२०॥ १०॥२०॥२।४।१७।। ५८. हारीत-ते० प्रा० १४।१८।। ५६. नकुलमुख-ऋक्तन्त्र ३।३।१० की टीका में स्मृत ॥
इन ५६ आचार्यों में अनेक प्राचार्य व्याकरण-शास्त्र के प्रवक्ता रहे होंगे। इस ग्रन्थ में इन में से केवल १० प्राचार्यों का उल्लेख किया है । शेष प्राचार्यों के विषय में अन्य सुदृढ़ प्रमाण उपलब्ध न होने से कुछ नहीं लिखा। पाणिनि से अर्वाचीन आचार्य
२० पाणिनि से अर्वाचीन अनेक प्राचार्यों ने व्याकरणसूत्र रचे हैं। उन में से निम्न प्राचार्य प्रधान हैं
१........ कातन्त्र (२०००वि० पू०) २ चन्द्रगोमी चान्द्र (१००० वि० पू०) ३. क्षपणक क्षपणक (वि. प्रथम शताब्दी) २५ ४. देवनन्दी (दिग्वस्त्र) जैनेन्द्र (सं० ५०० से पूर्व) ५. वामन विश्रान्तविद्याधर (सं० ४००-६००)
(१०००
१. शौरवीर माण्डकेय-शां० प्रा० ७।२।। २. ते० प्रा० ४।४० के माहिषेयभाष्य में भी यह उद्धृत है। ३. द्र०—पूर्व पृष्ठ ७६ की टि० ४॥
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