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खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
पंचत्थिपाहुड -
कुंदकुंद के पंचास्तिकाय का 'पंचत्थिपाहुड' नाम से उल्लेख आया है और उसकी दो गाथाएं भी उद्घृत की गई हैं ' । सत्प्ररूपणा में उनके ग्रंथों के जो अवतरण पाये जाते हैं उनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। परिकर्म ग्रंथ के उल्लेख और उसके साथ कुंदकुंदाचार्य के सम्बन्ध का विवेचन भी हम ऊपर कर आये हैं ।
गृद्धपिच्छाचार्यकृत तत्वार्थसूत्र -
धवलाकार ने तत्वार्थसूत्र को गृद्धपिच्छाचार्य कृत कहा है और उसके कई सूत्र भी उद्घृत किये हैं । इससे तत्वार्थसूत्रसंबंधी एक श्लोक व श्रवणबेलगोल के कुछ शिलालेखों के उस कथन की पुष्टि होती है जिसमें उमास्वाति को 'गृद्धपिंछोपलांछित' कहा है। सत्प्ररूपणा तत्वार्थसूत्र के अनेक उल्लेख आये हैं ।
आचारांग -
धवला में एक गाथा इस प्रकार से उद्धृत मिलती है - उत्तं च आयारंगे, पंचत्थिकाया य छज्जीवणिकायकालदव्वमण्णे य ।
आणागेज्झे भावे आणाविचएण विचिणादि ॥
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धवला. अ. २८९
यह गाथा वट्टकेरकृत मूलाचार में निम्न प्रकार से पाई जाती है - पंचत्थिकायछज्जीवणिकाये कालदव्वमण्णे य ।
आणागेज्झे भावे आणाविचयेण विचिणादि ॥ ३९९ ॥
यदि उक्त गाथा यहीं से धवला में उद्धृत की गई हो तो कहा जा सकता है कि उस समय मूलाचार की प्रख्याति आचारांग के नाम से थी ।
१. धवला अ. २८९ 'वुत्तं च 'पंचत्थिपाहुडे' कहकर चार गाथाएं उद्धृत की गई हैं जिनमें से दो पंचस्तिकाय में क्रमश: १०८, १०७ नंबर पर मिलती हैं। अन्य दो 'ण य परिणमइ सयं सो' आदि व ‘लोयायासपदेसे' आदि गाथाएं हमारे सन्मुख वर्तमानपंचास्तिकाय में दृष्टिगोचर नहीं होती । किन्तु वे दोनों गो. जीव में क्रमश: नं. ५७० और ५८९ पर पाई जाती हैं। धवला के उसी पत्र पर आगे पुन: वही 'वुत्तं च पंचत्थिपाहुडे' कहकर तीन गाथाएं उद्धृत की हैं जो पंचास्तिकाय में क्रमश: २३, २५ और २६ नं. पर मिलती है। (पंचास्तिकायसार, आरा, १९२०.)
२. देखो ऊपर पृ. ४६ आदि.
३. देखो पृ. १५१, २३२, २३६, २३९, २४०.
'तह गिद्धपिंछाद्ररियप्पयासिद तच्चत्थसुत्ते विवर्तना परिणाम .....
धवला पत्र २८९
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