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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ६० वर्ष बढ़ गये उसे उन्होंने अन्त में विक्रमकाल में घटाकर जन्म या राज्यकाल से ही संवत् का प्रारम्भ मान लिया और इस प्रकार ४७० वर्ष की संख्या कायम रखी । इस मत का प्रतिपादन पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ने किया है। इस मत का बुद्धनिर्वाण व आचार्य-परम्परा की गणना आदि से कैसा सम्बन्ध बैठता है, यह पुन: विवादास्पद विषय है जिसका स्वतंत्रता से विचार करना आवश्यक है। यहां पर तो प्रस्तुत प्रमाणों पर से यह मान लेने में आपत्ति नहीं कि वीर-निर्वाण से ४७० वर्ष पश्चात् विक्रम की मृत्यु के साथ प्रचलित विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ। अत: प्रस्तुत षट्खंडागम का रचना काल विक्रम संवत् ६१४ - ४७० = १४४, शक संवत् ६१४ - ६०५ - ९ तथा ईस्वी सन् ६१४ - ५२७ = ८७ के पश्चात् पड़ता है । षट्खण्डागम की टीका धवला के रचयिता प्रस्तुत ग्रंथ धवला के अन्त में निम्न नौ गाथाएं पाई जाती हैं जो इसके रचयिता की प्रशस्ति है - धवला की अन्तिम प्रशस्ति जस्स सेसाएण (पसाएण) मए सिद्धंतमिंद हि अहिलहुंदी (अहिलहुदं) महु सो एलाइरियो पसियउ वरवीरसेणस्स ॥१॥ वंदामि उसहसेण तिहुवण-जिय-बंधवं सिवं संतं । णाण-किरणावहासिय-सयल-इयर-तम-पणासियं दिहं ॥२॥ अरहंतपदो (अरहंतो) भगवंतो सिद्धा सिद्धा पसिद्ध आइरिया साहू य महं पसियंतु भडारया सव्वे ॥३॥ अज्जज्जणंदिसिस्सेणुज्जुब-कम्मस्स चंदसेणस्स। तह णत्तुवेण पंचत्थुहण्यंभाणुणा मुणिणा ॥४॥ सिद्धंत-छंद-जोइस-वायरण-पमाण-सतथ-णिवुणेण । भट्टारएण टीका लिहिएसा वीरसेणेण ॥५॥
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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