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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
सुयकेबलि पंच जणा बासट्ठि-वासे गये सुसंजादा पढमं चउदह-वासं विण्हुकुमारं मुणेयव्यं ॥४॥ नंदिमित्त वास सोलह तिय अपराजिय वास वावीसं ॥ इग-हीण-वीस वासं गोवद्धण भद्दबाहु गुणतीसं ॥५॥ सद सुयकेवलणाणी पंच जणा विण्हु नंदिमित्तो य॥ अपराजिय गोवद्धणतह भद्दबाहु य संजादा॥६॥ सद-वासट्टि सुवासे गए सु-उप्पण्ण दह सुपुव्वहरा ॥ सद-तिरासि वासाणि य एगादह मुणिवरा जादा ॥७॥
आयरिय विसाख पोट्ठल खत्तिय जयसेण नागसेण मुणी॥ सिद्धत्थ धित्ति विजयं बुहिलिंग देव धमसेणं ॥ ८॥ दह उगणीस य सत्तर इकवीस अट्ठारह सत्तर ॥ अट्ठारह तेरह वीस चउदह चोदय (सोडस) कमेणेय॥९॥ अंतिम जिण-णिव्वाणे तियसय-पण-चालवास जादेसु । एगादहंगधारिय पंच जणा मुणिवरा जादा ॥१०॥ नक्खत्तो जयपालग पंडव धुवसेन कंस आयरिया। अठारह वीस-वासं गुणचालं चोद बत्तीसं ॥११॥ सद तेवीस वासे एगादह अंगधरा जादा। वासं सत्ताणवदिय दसंग नव अंग अट्ठधरा ॥ १२ ॥ सुभदं च जसोभई भद्दबाहु कमेण च । लोहाचय्य मुणीसं च कहियं च जिणागमे ॥१३॥ छह अट्ठारह बासे तेवीस वावण (पणास) वास मुणिणाहं । दस णव अटुंगधरा वास दुसदवीस सधेसु॥१४॥ पंचसये पणसठे अंतिम-जिण-समय-जादेसु । उप्पणा पंच जणा इयंगधारी मुणेयव्वा ॥ १५ ॥ अहिवल्लि माघनंदि य धरसेणं पुप्फ्यंत भूदबली। अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस बीस वास पुणो ॥१६॥