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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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लोहार्य के पश्चात् चार आरातीय यतियों का जिस प्रकार इन्द्रनन्दिने एकसाथ उल्लेख किया है उससे जान पड़ता है कि संभवत: वे सब एक ही काल में हुए थे । इसी से श्रीयुक्त पं. जुगलकिशोरजी मुख्तारने उन चारों का एकत्र समय २० वर्ष अनुमान किया है। उनके पश्चात् के अर्हद्वलि आदि आचार्यों का समय मुख्तारजी क्रमश: १० वर्ष अनुमान करते हैं (समन्तभद्र पृ. १६१) । इसके अनुसार धरसेनाचार्य का समय वीनिर्वाण से ६८२ + ७२३ वर्ष पश्चात् आता है ।
२०+१०+१० =
किन्तु नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली इसका समर्थन नहीं करती । यथार्थत: यह पट्टावली अन्य सब परम्पराओं और पट्टावलियों से इतनी विलक्षण है और उन विलक्षणताओं . का प्रस्तुत आचार्यों के काल-निर्णय से इतना घनिष्ट संबन्ध है कि उसका पूरा परिचय यहां देना आवश्यक प्रतीत होता है । और चूंकि यह पट्टावली, जहां तक हमें ज्ञात है, केवल जैनसिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, सन् १९१३ में छपी थी जो अब अप्राप्य है, अत: उसे हम यहां पूरी बिना संशोधन का प्रयत्न किये उद्धृत करते हैं -
नन्दि - आम्नाय की पट्टावली
श्री त्रैलोक्याधिपं नत्वा स्मृत्वा सद्गुरुभारतीम् । वक्ष्ये पट्टावलीं रम्यां मूलसंघगणाधिपाम् ॥ १ ॥ श्रीमूलसंघप्रवरे नन्द्याम्नाये मनोहरे । बलात्कारगणोत्तंसे गच्छे सारस्वतीयके ॥ २ ॥
कुन्दकुन्दान्वये श्रेष्ठमुत्पन्नं श्रीगणाधिपम् । तमेवात्र प्रवक्ष्यामि श्रूयतां सज्जना जनाः ॥ ३ ॥
पट्टावली
अंतिम-जिण- णिव्वाणे केवलणाणी य गोयम - मुणिंदो । बारह - वासे य गये सुधम्म- सामी य संजादो ॥ १ ॥ तह बारह - वासे पुणसंजादो जम्बु - सामि मुणिणाहो । अठतीस-वास रहियो केवलणाणी य उक्किट्ठो ॥ २ ॥ वासट्ठि-केवल-वासे तिहि मुणी गोयम सुधम्म जंबू य । बारह बारह दो जणतिय दुगहीणं च चालीसं ॥ ३ ॥